एआई में बढ़त बनाने में जुटी भारत सरकार, कितनी सफल होगी यह तकनीक की डिजिटल कदमताल?
बात चाहे क्वांटम कंप्यूटिंग की हो या फिर एआई की, भारत सरकार और निजी क्षेत्र के उपक्रम दोनों ही नए जमाने की नई तकनीक को मिशन मोड में आगे बढ़ाने में जुटे

दरअसल मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) में भारत का पहला क्वांटम कंप्यूटर तैयार करने का काम लगभग पूरा होने वाला है. पूरी तरह तैयार हो जाने पर छोटे पैमाने का यह क्वांटम कंप्यूटर टीआईएफआर की क्वांटम मापन एवं नियंत्रण (क्यूमैक) लैब के लिए मील का एक अहम पत्थर साबित होगा. यह लैब क्वांटम सिस्टम बनाने में मूलभूत चुनौतियों का समाधान तलाशने के मकसद से 12 साल पहले स्थापित किया गया था.
क्यूमैक के प्रमुख डॉ. आर. विजयराघवन इस परियोजना को भारत के लिए बेहद अहम मानते हैं जो "हमें इस प्रतिस्पर्धा में उतरने देने" की दिशा में पहला कदम होगा. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के सहयोग से वे जिस परियोजना पर काम कर रहे हैं, उसमें क्वांटम प्रोसेसिंग यूनिट, इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ्टवेयर जैसे प्रमुख कंपोनेंट डिजाइन करना शामिल है और ये सारे काम बेहद जटिल प्रक्रिया का हिस्सा हैं.
क्वांटम बिट या क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटिंग सिस्टम की मूल इकाई है. यह एक तरह से बिट्स के समान होती है, जो पारंपरिक कंप्यूटर में डेटा के मापन की इकाई होती है. बिट बाइनरी (0 या 1 में से कोई भी) की स्थिति को दर्शाती है जबकि क्यूबिट एक ही समय में दोनों मान रख सकता है. एक साथ कई अवस्थाएं रख पाने में सक्षम होने को इसकी सुपरपोजिशन माना जाता है, जिसका सामान्य अर्थ यही है कि क्वांटम कंप्यूटर सैद्धांतिक तौर पर आज के सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर की तुलना में कहीं ज्यादा जटिल गणनाएं संभाल सकता है.
मसलन, यह आसानी से वे सभी सुरक्षित एल्गोरिद्म कोड तोड़ सकता है, जिन पर आज हमारे बैंकिंग लेन-देन, सैन्य संचार आदि निर्भर हैं. दवा से जुड़ी खोज की बात करें तो अणुओं को विभिन्न अवस्थाओं के अनुकूल ढालने की जरूरत होती है. या फिर लॉजिस्टिक सप्लाइ चेन को देखें तो लक्ष्य इसकी अभीष्ट प्रक्रिया तक पहुंचना होता है—क्वांटम कंप्यूटर इस तरह की जटिल प्रक्रियाओं को चुटकियों में आसान बना देता है.
यही वजह है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के साथ क्वांटम कंप्यूटिंग भी अधिकतर देशों के राष्ट्रीय एजेंडे में 'अहम’ प्रौद्योगिकियों की सूची में प्रमुखता से शुमार है. इस वर्ष अप्रैल में प्रकाशित मैकेंजी क्वांटम टेक्नोलॉजी मॉनिटर के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर विभिन्न सरकारों की तरफ से पिछले कुछ वर्षों में क्वांटम प्रौद्योगिकियों के वित्तपोषण के लिए की जाने वाली घोषणाएं 2023 में 42 अरब डॉलर (मौजूदा दर के हिसाब से करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गई हैं.
भारत ने भी अप्रैल 2023 में एक राष्ट्रीय क्वांटम मिशन की घोषणा की, जिसके लिए 2030-31 तक 6,000 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की गई है. विश्व क्वांटम दिवस (14 अप्रैल) पर जारी एक विज्ञप्ति में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा, "क्वांटम प्रौद्योगिकी एक नया प्रौद्योगिकी मोर्चा है जिसे दशकों के मौलिक शोध के बाद हासिल किया गया है."
पहला कदम
क्यूमैक और उनके सहयोगियों के लिए छोटे पैमाने के क्वांटम कंप्यूटर एक तरह से प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन हैं. विजयराघवन कहते हैं कि यह जो समीकरण हल कर सकता है, लैपटॉप 'हू-ब-हू वैसा उतारकर’ सामने रख सकता है. वे कहते हैं, "लेकिन हमें अगर 100-क्यूबिट सिस्टम बनाना है तो कुछ शुरुआत तो करनी होगी. इसलिए इससे हमें क्वांटम कंप्यूटर के विभिन्न पहलुओं को समझने और चुनौतियों का आकलन करने के लिहाज से जरूरी विशेषज्ञता हासिल करने में मदद मिलती है."
वे बताते हैं कि कैसे आईबीएम ने करीब आठ वर्ष पहले क्लाउड पर अपना पहला 5-क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटर लॉन्च किया था. उनके शब्दों में, "हमारे लिए यह इस दिशा में पहला कदम ही है." राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के तहत विजयराघवन पांच संस्थानों के आठ वैज्ञानिकों की एक टीम का नेतृत्व करते हैं, जो तीन साल में 24-क्यूबिट कंप्यूटर और पांच साल में 100-क्यूबिट कंप्यूटर बनाने की तैयारी में जुटी है. इसी तरह विशेषज्ञों की अन्य टीमें अलग-अलग प्रस्तावों पर काम कर रही हैं—इनमें फोटॉन, न्यूट्रल परमाणुओं या आयनों के इस्तेमाल के जरिए क्वांटम सिस्टम बनाने के लिए विभिन्न तकनीक अपनाना शामिल है.
वैज्ञानिक चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं क्योंकि क्यूबिट अस्थिर होते हैं और जरा-सी भी चूक से सारे नतीजे गड़बड़ा सकते हैं. वैश्विक स्तर पर शोधकर्ताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि त्रुटि-रहित क्यूबिट के जरिए इस तरह की 'असंबद्धता’ का समाधान किस तरह निकालें. विजयराघवन कहते हैं, "आपको साबित करना होगा कि इस तरह की प्रणाली का उपयोग करके आप वास्तव में किसी ऐसी समस्या का समाधान निकाल रहे हैं जो उद्योग या विज्ञान या समाज के लिए प्रासंगिक है. साथ ही यह भी दिखाना होगा कि यह बेहतर, तेज और किफायती है. निश्चित तौर पर यही क्वांटम कंप्यूटरों की उपयोगिता का पहला पैमाना होगा. हम अभी तक वहां नहीं पहुंचे हैं."
ऐसे अन्य लोग भी हैं जो इस पूरी कवायद का हिस्सा बनना चाहते हैं. बेंगलूरू के नागवारा स्थित एक बिजनेस पार्क टावर की पहली मंजिल पर क्यूपीआइएआइ स्टार्ट-अप के सीईओ और अध्यक्ष डॉ. नागेंद्र नागराजा ने अपने कार्यालय के एक कोने को लैब बनाने की तैयारी कर ली है. सितंबर तक इसमें एक आयातित डायलूशन रेफ्रिजरेटर लगाया जाना है. नागराजा 60 लाख डॉलर (50 करोड़ रुपए) की फंडिंग जुटाने के बाद एक 25-क्यूबिट क्वांटम कंप्यूटर बना रहे हैं जिसे इस साल के अंत तक जारी करने की योजना है.
क्रायोजेनिक रेफ्रिजरेटर इसके लिए एक प्रमुख घटक है. एक बार मशीन तैयार हो जाने पर क्यूपीआईएआई की योजना यह प्लेटफॉर्म क्लाउड के जरिए ग्राहकों को उपलब्ध कराना है. साथ ही भारत के शीर्ष संस्थानों और रिसर्च समूहों को ऐसे सिस्टम की आपूर्ति के बिजनेस मॉडल पर भी विचार-विमर्श किया जा रहा है. नागराजा का कहना है, "एआई और क्वांटम कंप्यूटिंग को एकीकृत करना हमारा विजन है." वे कहते हैं कि भारतीय कंपनियों केपास वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा करने का मौका है.उनके मुताबिक, "एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में जितनी अधिक कंपनियां होंगी, देश उतना ही अधिक समृद्ध होगा."
दुनियाभर में क्वांटम प्रौद्योगिकी अभी एक नया क्षेत्र है, इसलिए इसमें सही मायने में अवसरों की भरमार है क्योंकि दुनियाभर में यह अभी एक नया क्षेत्र ही है. यही वजह है कि भारत का 6,000 करोड़ रुपए का मिशन और भी ज्यादा अहम हो जाता है. भारत में अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्तपोषण की परिपाटी के संदर्भ में देखें तो यह एक बड़ा खर्च है. मगर क्वांटम प्रौद्योगिकी क्षेत्र अपने आप में बहुत विशाल है, और इसका मतलब है कि इस निधि से बहुत ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता.
एआई और सेमीकंडक्टर की चुनौती
इस बीच, इस साल मार्च में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में एआई के इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए 10,372 करोड़ रुपए के मिशन को मंजूरी दी. इंडियाएआई मिशन की ठोस रूपरेखा कुछ महीनों में घोषित होने की उम्मीद है. इसका उद्देश्य कंप्यूटिंग संसाधनों तक समान पहुंच सुनिश्चित करना, डेटा की गुणवत्ता बढ़ाना, घरेलू एआई विशेषज्ञता को बढ़ावा देना और सामाजिक तौर पर प्रभावी एआई परियोजनाओं को गति देना है. जुलाई में ग्लोबल इंडिया एआई समिट 2024 में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि सरकार ने एआई मिशन के तहत 10,000 ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) हासिल करने की योजना बनाई है.
वैष्णव ने कहा, "सरकार एक पब्लिक फोरम बनाने में निवेश करेगी, जहां तकनीक के साथ-साथ कानूनी स्तर पर भी कंप्यूटिंग पावर, उच्च गुणवत्ता वाले डेटा सेट, प्रोटोकॉल का एक साझा सेट, एक साझा फ्रेमवर्क आदि उपलब्ध होगा." उन्होंने कहा कि कृषि, चिकित्सा, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुप्रयोगों पर काम करने वाले स्टार्ट-अप और शिक्षाविद् अपने प्रयासों को गति देने के लिए इस मंच का उपयोग कर पाएंगे.
सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भारत भले देर से उतरा, मगर दुनिया के 20-25 फीसद कंप्यूटर चिप डिजाइनर यहीं पर हैं. सेमीकंडक्टर और एलसीडी डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने और आयात पर निर्भरता की चुनौती से निबटने के लिए सरकार ने 2022 में 76,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना घोषित की थी.
इस वर्ष फरवरी में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने ऐलान किया कि उसे ताइवान के पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन (पीएसएमसी) के साथ मिलकर गुजरात के धौलेरा में एक मेगा सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन सुविधा या फैब बनाने के लिए सरकारी मंजूरी मिल गई है. फैब में कुल 91,000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की गई है और वहां प्रति माह 50,000 चिप बनाने की क्षमता होगी. इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 20,000 से कुशल रोजगार उत्पन्न होंगे.
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने 31 जुलाई को लोकसभा को बताया कि भारतीय सेमीकंडक्टर बाजार के आकार के 2023 में 38 अरब डॉलर (3.2 लाख करोड़ रुपए) से बढ़कर 2030 तक 109 अरब डॉलर (9.15 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंचने के आसार हैं. वहीं वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग के 2030 तक 1,000 अरब डॉलर (83.95 लाख करोड़ रुपए) तक बढ़ने की उम्मीद है.
वैश्विक स्तर पर कंप्यूटर चिप निर्माण के उलट क्वांटम प्रोसेसर के लिए शायद ही कोई वाणिज्यिक निर्माण केंद्र है. इसका मतलब है कि भारत के पास इस मोर्चे पर निवेश की योजनाएं बनाने के लिए यह उपयुक्त समय है. मैकेंजी रिपोर्ट की मानें तो क्वांटम कंप्यूटिंग का आर्थिक प्रभाव सबसे पहले केमिकल्स, लाइफ साइंसेज, फाइनेंस और मोबिलिटी पर नजर आएगा.
उभरती प्रौद्योगिकियों में अधिक निवेश की जरूरत स्पष्ट करने के लिए क्यूपीआईएआई के नागेंद्र नागराजा वैश्विक स्तर पर दो प्रमुख रुझानों का जिक्र करते हैं, "एक है सतत ऊर्जा को अपनाने की तरफ बढ़ना. और दूसरा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र है, जहां वस्तुओं की लागत में बेहद ज्यादा कमी लाने की जरूरत है." उनके मुताबिक, क्वांटम प्रौद्योगिकी और एआई दोनों ही इनोवेशन को बढ़ावा देकर इसमें कारगर भूमिका निभा सकते हैं. वे कहते हैं, "पदार्थ हर किसी का केंद्रीय आधार होता है. अगर हमारे पास 300 त्रुटि-रहित क्यूबिट हैं, तो मुझे लगता है कि बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है." निश्चित तौर पर अभी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है. मगर इसकी शुरुआत तो हो चुकी है.
- अजय सुकुमारन