बजट 2024 : स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर मोदी सरकार की जेब क्यों टाइट हो गई?

स्वास्थ्य देखभाल और परिवार कल्याण के लिए आवंटन न केवल उम्मीद से भी कम, महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर भी ध्यान देने से चूका बजट

अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली में लेजर ब्रेन मशीन के लगाए जाने का निरीक्षण करता एक सर्जन
अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली में लेजर ब्रेन मशीन के लगाए जाने का निरीक्षण करता एक सर्जन

दरअसल, साल 2024-25 के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए धन आवंटन में करीब दो फीसद की ही वृद्धि की गई है जो जरूरत से बेहद कम है. इतना ही नहीं, इसमें जीवन रक्षक दवाओं और इमरजेंसी इलाज के लिए करों को तर्कसंगत बनाने, स्वास्थ्य देखभाल को सस्ता और सुलभ बनाने के मामले में सुधार के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन और जीएसटी सुधार—खास तौर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जो 18 फीसद के अच्छे खासे स्तर पर है—सरीखे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का ध्यान भी नहीं रखा गया है.

बजट को लेकर इस उद्योग से जुड़े लोगों की यही राय है. यह खास तौर पर इसलिए भी सच है क्योंकि इसमें पिछले साल केंद्र की ओर से स्वास्थ्य देखभाल पर किए गए संशोधित व्यय अनुमानों का ही अनुसरण किया गया है, जो इससे पहले के बजट अनुमानों से करीब 10,000 करोड़ रुपए कम था. 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को वित्त वर्ष 2024-25 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए 90,958 करोड़ रुपए के बजट का ऐलान किया. यह 2023-24 के बजट में इस क्षेत्र के लिए आवंटित 89,155 करोड़ रुपए से थोड़ा ही अधिक है. इस क्षेत्र में पहले से ही आपूर्ति और मांग का अंतर बहुत अधिक है, ऐसे में इसके लिए धन आवंटन में मामूली वृद्धि से स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञ निराश और चिंतित हैं.

केंद्र की आर्थिक समीक्षा 2022-23 के मुताबिक, भारत में संचारी और गैर-संचारी बीमारियों का बोझ सबसे ज्यादा है और इन पर लोगों की अपनी जेब से करीब 50 फीसद खर्च होता है. यह ऐसी स्थिति है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने पर 'भयावह’ माना जाता है. ऐसे परिदृश्य में, सार्वजनिक-निजी पहल, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआइ) के सद्भावना दूत और मानद् प्रतिष्ठित प्रोफेसर श्रीनाथ रेड्डी इस साल के आवंटन को ''स्वास्थ्य देखभाल के लिए बहुत कम और महज सांकेतिक बजट’’ करार देते हैं.

इस क्षेत्र के विशेषज्ञ भी स्वास्थ्य देखभाल पर जीडीपी के 2.5 फीसद लक्षित खर्च को लेकर आशंकित हैं. पिछले दो साल से सरकार लगातार इसका वादा करती रही है. इस समय स्वास्थ्य देखभाल पर जीडीपी का 2.1 फीसद खर्च होता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा के मुताबिक, वर्ष 2013-14 और वर्ष 2019-20 के दौरान सरकार के स्वास्थ्य देखभाल खर्च में बढ़ोतरी महज 0.22 फीसद थी.

न केवल कई अपेक्षित स्वास्थ्य देखभाल सुधार भी 2024-25 के बजट में गायब हैं, बल्कि धन आवंटन में मामूली वृद्धि ने भविष्य की उन योजनाओं को लेकर संदेह पैदा कर दिए हैं जिनकी इस साल के शुरू में अंतरिम बजट में घोषणा की गई थी. मसलन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) को देशभर में सर्वाइकल कैंसर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करना है. वहीं, सभी बच्चों के टीकाकरण का एनएचएम का कार्यक्रम अब भी 85 फीसद पर अटका हुआ है. 23 जुलाई के बजट में आदिवासी स्वास्थ्य योजना शुरू की गई.

इसे भी एनएचएम को ही लागू करना है. मगर, इस एजेंसी पर सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं के बढ़ते बोझ के बावजूद इसे धन आवंटन में महज 1.16 फीसद की ही बढ़ोतरी मिली है. और भारत में डिजिटल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के वादों के बावजूद आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के बजट आवंटन में कोई वृद्धि नहीं हुई है.

इसकी तुलना में सरकार की मुख्य चिकित्सा बीमा योजना आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाइ) के बजट में भी महज 7.4 फीसद की वृद्धि की गई है. लेकिन विशेषज्ञ गहरे खेद के साथ कहते हैं कि इस योजना के उचित कार्यान्वयन के लिए यह पर्याप्त नहीं है. इसी तरह देश के प्रतिष्ठित सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान और अस्पताल, एम्स दिल्ली, को बजट आवंटन में 5.7 फीसद की वृद्धि मिली है, मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इस केंद्रीय अस्पताल में सेवाओं की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है.

इन चिंताओं के बावजूद, स्वास्थ्य बजट में सबकुछ एकदम खराब भी नहीं है. मसलन, आयुष मंत्रालय के लिए बजट आवंटन 2023-24 में 3,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर इस साल 3,712.49 करोड़ रुपए कर दिया गया है. स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए आवंटन में भी 10.8 फीसद का इजाफा हुआ है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) को 2,732.13 करोड़ रुपए का आवंटन मिला है जो वर्ष 2023-24 के 2,295.12 करोड़ रुपए से अधिक है. राष्ट्रीय टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के आवंटन में भी इजाफा हुआ है और यह पिछले साल के 65 करोड़ रुपए की तुलना में 90 करोड़ रुपए हो गया है.

विश्व के सबसे बड़े क्लिनिकल अनुसंधान संगठनों में से एक, पेरेक्सल के कार्यकारी उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक संजय व्यास कहते हैं, ''केंद्रीय बजट में आरऐंडडी, खासतौर पर अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के जरिए आवंटन बढ़ा दिया गया है. यह क्लिनिकल अनुसंधान उद्योग के लिए स्वागतयोग्य कदम है. यह इस क्षेत्र में इनोवेशन पर बढ़ते जोर के अनुरूप है.

जन विश्वास ऐक्ट के तहत सरकार के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर देने से भी क्लिनिकल ट्रायल्स की परिचालन दक्षता काफी बढ़ जाएगी.’’ फार्मा क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के लिए आवंटित 2,143 करोड़ रुपए का भी उद्योग ने स्वागत किया है. जेनरिक फार्मास्यूटिकल कंपनी सुप्रिया लाइफ साइंस की निदेशक डॉक्टर सलोनी वाघ कहती हैं, ''ये कदम तीन साल में 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर के जीडीपी लक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं.’’ 

हालांकि कैंसर की तीन दवाओं—ट्रस्टुजुमैब  डेरक्सटेकन, ओसिमेरटिनिब और डुर्वालुमाब—को सीमा शुल्क मुक्त करने पर मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई है. ये तीनों दवाएं फार्मा दिग्गज एस्ट्राजेनेका बनाती है और आमतौर पर इनका इस्तेमाल फेफड़े और ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में होता है. एक ओर यह कैंसर उपचार पर ध्यान बढ़ाने की कोशिश है. दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट ऐंड रिसर्च सेंटर के सीईओ डी.एस. नेगी कहते हैं, ''कैंसर की दवाओं की ऊंची कीमतें कई मरीजों के लिए बहुत बड़ी बाधा रही है और इस छूट से निस्संदेह इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को बहुत बड़ी वित्तीय राहत मिलेगी.’’

हालांकि सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि दवाओं को किफायती बनाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता था. डॉक्टर रघुवंशी कहते हैं, ''मौजूदा बजट में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र की लंबे अरसे से चली आ रही मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है. इनमें स्वास्थ्य देखभाल को राष्ट्रीय मसले के रूप में प्राथमिकता देना, भारत में मेडिकल वैल्यू ट्रैवल को बढ़ावा देना और समान दर के साथ जीएसटी को तर्कसंगत बनाना और फुल इनपुट टैक्स क्रेडिट पात्रता शामिल है.’’

हेल्थकेयर ग्लोबल एंटरप्राइजेज के कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर बी.एस. अजय कुमार खेद के साथ कहते हैं कि कुल मिलाकर स्वास्थ्य देखभाल के लिए बजट आवंटन ''रक्षा और अन्य प्राथमिकता क्षेत्रों को भारी-भरकम आवंटन के आगे कुछ भी नहीं है.’’ ऐसे में, अब देखना यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस फंड के विवेकशील उपयोग के साथ इन चिंताओं को दूर कर पाता है या नहीं.

खास बातें

●राष्ट्रीय हेल्थ मिशन और आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के बजट में बेहद मामूली वृद्धि की गई है
●स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए आवंटन में 10.8 फीसद का इजाफा, 2023-24 में 2,980 करोड़ रुपए से बढ़कर अब 3,301.73 करोड़ रुपए हो गया
●एक्स-रे ट्यूब और फ्लैट पैनल डिटेक्टर के लिए बुनियादी सीमा शुल्क में बदलाव का प्रस्ताव, इससे घरेलू ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्र्स को फायदा होगा. मगर यह बेमकसद नजर आता है क्योंकि कई स्वास्थ्य देखभाल और वेलनेस सेंटरों में बुनियादी डायग्नोस्टिक टूल्स भी नहीं
●फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स की संख्या और कौशल बढ़ाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं.

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