कब आएंगे एनएसडी के अच्छे दिन?
स्थायी निदेशक की राह निहारते एनएसडी के भविष्य को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं. पर यह तो 10-15 साल की बेरुखी और अदूरदर्शिता का नतीजा है.

एक महान संस्थान का संपूर्ण अधोपतन...अब समय आ गया है जब इस संस्था को बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह अपने मकसद से भटक गई है.'' देश में नाट्य कला का प्रशिक्षण देने वाली शीर्ष संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के बारे में फेसबुक पर यह टिप्पणी वहीं के स्नातक और देश के चर्चित रंगकर्मी-नाटककार सत्यव्रत राउत ने 16 मार्च को की. वे दरअसल एक दिन पहले ही प्रोफेसर रमेशचंद्र गौड़ को एनएसडी का निदेशक बनाए जाने पर प्रतिक्रिया जता रहे थे. तमाम एनएसडी स्नातक और देश के दूसरे रंगकर्मी कयास लगाते हुए एक-दूसरे से पूछ भी रहे थे कि वे हैं कौन, जिन्हें थिएटर के लोगों के बीच 'अजनबी' होने के बावजूद एनएसडी का निदेशक बनाया है. वे दिल्ली में ही स्थित प्रमुख सांस्कृतिक संस्था इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) के डीन और डायरेक्टर (लाइब्रेरी ऐंड इन्फॉर्मेशन) हैं और उन्हें यह अतिरिक्त दायित्व दिया गया है.
एनएसडी सितंबर 2018 में प्रो. वामन केंद्रे की विदाई के बाद से ही प्रभारी निदेशकों के भरोसे चल रहा है. तब से नियुक्ति के लिए दो बार समितियां बनने, चयन होने और फिर अदालती पेच फंसने के चलते प्रक्रिया टलती ही गई. इस बीच प्रभारी निदेशक बने क्रमश: सुरेश शर्मा और दिनेश खन्ना के दक्षिणपंथी रुझान और जुड़ावों के चलते विद्यालय में आरएसएस की विचारधारा हावी होने की चर्चाएं पूरे थिएटर हलके में खूब चलीं. पिछले करीब 60 वर्षों में 1,100 से अधिक स्नातक तैयार करने के साथ ही देश भर में रंगकर्म को एक नया चेहरा देने वाले विद्यालय की प्रतिष्ठा और गरिमा को लेकर सवाल उठने लगे. पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर तो कहते हैं, ''लगता नहीं कि एनएसडी अब अपनी गरिमा बचा पाएगा. थिएटर की ट्रेनिंग की संस्था को उत्सव कराने वालों की संस्था बना दिया गया.'' वे गिने-चुने लोगों में हैं जो खुलकर कह पा रहे हैं वर्ना विद्यालय से जुड़े ज्यादातर शिक्षक-रंगकर्मी इस तर्क के साथ सामने नहीं आते कि बोलने से लाभ भले न हो, नुक्सान का पूरा अंदेशा है. अंकुर इसे भी रेखांकित करते हैं: ''फैकल्टी ही एनएसडी की जान है और उसमें ऐसा खौफ पहले देखा कभी आपने?''
पर एनएसडी की दिक्कतें असल में एक साथ नहीं आई हैं. फैकल्टी के 17 में से 10 पद खाली हैं. 26 के हर बैच में अभिनय के 18-20 छात्र होने के बावजूद उसके नियमित शिक्षक सिर्फ दो हैं. बताते हैं, पिछले पांच साल में फैकल्टी और स्टाफ के 37 लोग रिटायर हुए, जिनमें से दर्जन भर से ज्यादा तो अभिनय, स्टेज डिजाइन और लाइटिंग वगैरह के नामीगिरामी शिक्षक थे. मसलन, अब्दुल लतीफ खटाना, हेमा सिंह, अशोक सागर भगत. और नियुक्तियां उस तरह से हुईं नहीं. दस साल से खाली क्लासिकल इंडियन ड्रामा के शिक्षक पद के लिए तीन बार योग्य अभ्यर्थी ही न मिलने पर अब चौथी बार विज्ञापन निकला है. शांतनु बोस वर्ल्ड ड्रामा भी पढ़ाते हैं, 20 कलाकारों की रेपर्टरी का भी प्रभार है और देश भर के हजारों थिएटर ग्रुप्स को ग्रांट का भी काम है.
एक शिक्षक बताते हैं, ''हम ठीक से पढ़ा तो पा नहीं रहे, गेस्ट फैकल्टी बुला-बुलाकर किसी तरह से काम चल रहा है. ऊपर से इतने फेस्टिवल, वर्कशॉप.'' यहां तक कि दूसरा स्टाफ भी काम के बोझ से लदा है. पांचेक साल पहले तो इसी मुद्दे पर स्टाफ की बड़ी मीटिंग हुई, जिसमें स्टाफ के लोगों ने साफ कहा कि अब बहुत हुआ. उन्हें ओवरटाइम नहीं चाहिए, वे भी बीवी-बच्चों और परिवार के साथ समय बिताना चाहते हैं. एनएसडी के स्नातकों के संगठन एसोसिएशन ऑफ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा एलुमनाइ (अंसदा, जिसके इस समय करीब 200 सदस्य हैं) के अध्यक्ष और विद्यालय के वाराणसी केंद्र के निदेशक रामजी बाली इस दौर को एनएसडी का संक्रमणकाल मानते हैं.
उनके शब्दों में, ''यह सही है कि निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया को ठीक से हैंडल नहीं किया गया. उस वजह से चीजें उलझती गईं. पर बुरा दौर बीत गया है. उम्मीद है अगले छह महीने में स्थायी निदेशक मिल जाएगा. जल्दी ही अच्छे दिन आएंगे. नाम न छापने की शर्त पर एक शिक्षक तस्वीर को और साफ करते हैं, ''एनएसडी अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक विशिष्ट संस्था है और इसके लिए उतनी ही विशिष्ट योग्यता वाले लोग चाहिए, जो रातोरात तैयार नहीं होते. चाहे वे शिक्षक हों या दूसरे एक्सपर्ट. हमें नियमित अंतराल पर भर्तियां करते हुए नई पीढ़ी तैयार करनी पड़ेगी.''
जो भी हो, प्रो. गौड़ सधे अंदाज में कदम उठा रहे हैं. एनएसडी के निदेशक की कुर्सी पर सहज दिखने के अतिरिक्त प्रयास के साथ वे अपनी पहलकदमियों के बारे में बताते हैं, ''नए निदेशक की चयन प्रक्रिया जल्द शुरू होगी. 11 अप्रैल से हमने नया बैच (प्रथम वर्ष) शुरू कर दिया है और सितंबर-अक्तूबर तक दूसरा बैच ले लेंगे. यानी कोरोना संकट के बावजूद बस एक सेमेस्टर का नुक्सान रहेगा. चार जून से हम 15 दिन का भारत रंग महोत्सव दिल्ली और दस दूसरे शहरों में कर रहे हैं. राजमुंदरी (आंध्र प्रदेश) में एनएसडी का नया सेंटर खोलने की तैयारी शुरू हो गई है. 600 से ज्यादा एलुमनाइ मेरे फेसबुक फ्रेंड बने हैं.''
लेकिन एक अदद स्थायी निदेशक आए बगैर कैसे जाएंगे एनएसडी के बुरे दिन?
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