बिहारः भाजपा यों झुकी

एक और सहयोगी को खो बैठने के डर से बिहार में भाजपा 2019 के लिए संसदीय सीटों की नीतीश की मांग के आगे झुकी.

26 अक्तूबर को दिल्ली में मीडिया से रू-ब-रू नीतीश कुमार और अमित शाह
26 अक्तूबर को दिल्ली में मीडिया से रू-ब-रू नीतीश कुमार और अमित शाह

आखिरकार, भाजपा और उसके अध्यक्ष अमित शाह को नरम होना पड़ा. 26 अक्तूबर को अमित शाह और जद (यू) प्रमुख तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह घोषणा की कि वे बिहार में 2019 लोकसभा चुनाव में बराबर सीटों पर लड़ेंगे. भगवा पार्टी काफी झुक गई. फिलहाल राज्य में उसके पास लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं.

राज्य में 2014 में भाजपा को 40 में से 22 पर जीत मिली थी, जबकि अकेले लडऩे वाले जद (यू) को सिर्फ दो सीटें हासिल हुई थीं. पटना में भाजपा के एक नेता ने कहा कि नए तालमेल का मतलब यह है कि उनके कम से कम पांच मौजूदा सांसदों का टिकट कट सकता है. राज्य में एनडीए के पास फिलहाल 33 सीटें हैं, जिनमें रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के पास छह और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के पास तीन सीटें हैं.

जद (यू) सूत्रों के मुताबिक भाजपा को यह घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि नीतीश कुमार ने गठबंधन की किसी भी बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. हालांकि, शाह और नीतीश ने अभी किसी संख्या का खुलासा नहीं किया है, लेकिन यह माना जा रहा है कि दोनों पार्टियां 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. इस तरह एलजेपी के लिए सिर्फ चार और आरएलएसपी के लिए सिर्फ दो सीटें बचेंगी. कुशवाहा तो खुलकर विपक्ष के साथ गलबहियां करने की कोशिश करते देखे गए, लेकिन लगता है कि भाजपा नेतृत्व को इसकी बहुत परवाह नहीं है.

भाजपा के कई नेता निजी तौर पर यह दावा कर रहे थे कि उनकी पार्टी जद (यू) से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. भाजपा के झुकने की वजह यह मानी जा रही है कि बिहार में अच्छे परिणाम के लिए भाजपा नीतीश कुमार पर निर्भर है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'चंद्रबाबू नायडू का साथ छूट जाने के बाद अब हमारा केंद्रीय नेतृत्व यह नहीं चाहता कि नीतीश जैसे सहयोगी का साथ छूटे.''

यकीनन भाजपा के लिए इसकी वजह भी है. 2005 से 2015 के बीच (सिर्फ 2014 में नरेंद्र मोदी लहर को छोड़ दें तो) हुए चार विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव के दौरान जीत उसी धड़े को हासिल हुई जिसकी तरफ नीतीश कुमार थे. राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ''2014 के विपरीत 2019 में हमें एंटी-इंकम्बेंसी और मोहभंग जैसे माहौल से निपटना होगा. इसलिए बिहार में जीत का मौका बनाए रखने के लिए हमें नीतीश कुमार को अपने पाले में रखना ही होगा.''

वास्तव में, भाजपा नेताओं का एक वर्ग इस रणनीति को उपयुक्त मानता है कि बिहार में एनडीए के लोकसभा अभियान का नेतृत्व नीतीश को करने दिया जाए. पटना में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ''बिहार में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने से राज्य में मोदी सरकार के खिलाफ बने किसी संभावित एंटी इंकम्बेंसी से निपटा जा सकता है.''

जद (यू) के एक उत्साहित नेता का मानना है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनावों में भाजपा की हार और मोदी लहर के ठंडे पड़ते जाने से भगवा पार्टी के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है कि वह नीतीश कुमार के साथ आगे बढ़े.

फिलहाल राज्य में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें वाली भाजपा सीटों के बंटवारे में झुक गई

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