दलितों के शादी कार्डों पर छाए बाबा आंबेडकर और बुद्ध, गायब हुए देवी-देवता

राजस्थान में हाल में बढ़ा दलितों का सांस्कृतिक प्रतिरोध

नया चलन दलित अपने शादीकार्ड में समुदाय के महापुरुषों के चित्र प्रकाशित करवा रहे हैं
नया चलन दलित अपने शादीकार्ड में समुदाय के महापुरुषों के चित्र प्रकाशित करवा रहे हैं

राजस्थान में शादी कार्ड छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस वालों को अपने कंप्यूटर में अब एक और फोल्डर बनाना पड़ रहा है. देवी-देवताओं के फोल्डर के पास अब भीमराव आंबेडकर के क्लिपआर्ट जमा हो रहे हैं. दरअसल, अब दलित परिवारों में शादी-विवाह के कार्ड में हिंदू देवी-देवताओं की बजाए आंबेडकर और भगवान बुद्ध के चित्र प्रकाशित करवाने का चलन बढ़ गया है. नागौर जिले के कुचामनसिटी में एक प्रिंटिंग प्रेस वाले की मानें तो अब दलित ग्राहकों की पहली मांग कार्ड में आंबेडकर की तस्वीर लगाने की होती है.

मूलरूप से दौसा निवासी और अब जयपुर में रह रहे 34 वर्षीय सत्येंद्र मुरली कहते हैं, "इससे पहले अमूमन महाराष्ट्र और यूपी में ही दलितों में इस तरह के ट्रेंड नजर आते थे. पर पिछले दो-तीन साल में राजस्थान में भी दलितों में इस तरह की नई चेतना आई है और वे शादी की परंपराओं के जरिए सांस्कृतिक प्रतिरोध भी दर्ज कर रहे हैं.'' सत्येंद्र ने भी दो साल पहले अपनी शादी के कार्ड में आंबेडकर और बुद्ध के चित्र प्रकाशित करवाए थे. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी शादी की तिथि भी रविदास जयंती तय की थी.

हाल में एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और 2 अप्रैल के भारत बंद में भी दलितों के प्रतिरोध की तीव्रता की झलक मिली. इस आंदोलन के बाद दलित समाज में यह ट्रेंड और तेज हो गया है. शादी कार्ड पर हिंदू देवता गणेश की जगह आंबेडकर ने ली है.

2 अप्रैल के बाद इस तरह के तकरीबन दो सौ से ज्यादा कार्ड छपवाए गए हैं. सत्येंद्र के मुताबिक, प्रदेशभर में ऐसे कार्डों की संख्या इससे भी ज्यादा होगी. वे कहते हैं, "पहले किसी राजनैतिक दल से जुड़े इक्का-दुक्का परिवारों में ही यह ट्रेंड देखने को मिलता था. पर अब जनसामान्य में भी यह ट्रेंड उभर गया है.''

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही दलितों में नाराजगी बढ़ी है और इन सांस्कृतिक रूपों में भी बाहर आ रही है. सत्येंद्र के मुताबिक, तस्वीरों के अलावा शादी-कार्ड पर बुद्ध वंदना भी लिखवाई जाती है. यही नहीं, शादी के अलावा घरों में आंबेडर और बुद्ध वंदना करवाने आदि तरीकों में भी यह ट्रेंड नजर आ रहा है.

इस मुहिम की अगुआई दलित समाज का पढ़ा-लिखा और जागरूक तबका करता दिख रहा है. नागौर जिले के बूड़सू गांव में व्याख्याता, वरिष्ठ शिक्षक और बीएसएफ  में नौकरी करने वाले एक परिवार में शादी होनी है और उसने शादी कार्ड पर आंबेडकर की तस्वीर तथा नीचे जय भीम लिखा है.

दिलचस्प कि इनके कार्ड में एक तरफ  गणेश भी विराजमान हैं. पर पास के सफेड़ बड़ी गांव के एक शादी कार्ड में गणेश चित्रित नहीं हैं. ट्रक ड्राइवरों वाले इस परिवार के एक शख्स ने बताया, "अब हमारी चेतना जागृत हो चुकी है.'' इस समाज के अधिकतर लोगों का कहना है कि उनके भगवान तो आंबेडकर हैं, "बाकी सब आडंबर'' है.

राजस्थान के कुछ हिस्सों में सवर्ण शादी-विवाह के दौरान दलितों के घोड़े पर सवार होने (घुड़चढ़ी) का विरोध करते रहे हैं. प्रदेश दलितों के खिलाफ अपराध की 5,134 घटनाओं के साथ देश में तीसरे स्थान पर है. हाल ही में भीलवाड़ा के गोवर्धनपुरा गांव में सवर्णों ने दलित दूल्हे की घुड़चढ़ी करने पर पिटाई की.

तो क्या सवर्णों की ओर से होने वाले इस तरह के भेदभाव ने दलितों को इस तरह की चीजें अपनाने को प्रेरित किया है? सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी कहते हैं, "हां, यह भी एक वजह है. पर बड़ी वजह यह है कि जनसामान्य में जागरूकता आई है. इस वजह से दलित ब्राह्मणवादी आडंबरों की बजाए अपने महापुरुषों से बताए मार्ग से जुड़ रहे हैं.

यह ट्रेंड गांवों-कस्बों में शुरू हुआ और शहरों में भी नजर आ रहा है.'' उनके मुताबिक, दलितों के अपने घरों के आगे नीला झंडा लगाने के चलन में भी वृद्धि हुई है. वे इस नई चेतना की वजह बताते हैं, "दलित युवा आज आजीविका के लिए स्थानीय लोगों पर निर्भर नहीं रह गया है.

वह अब खेतिहर मजदूर नहीं रहा बल्कि शहरों में जाकर नौकरी भी कर रहा है. सो उसमें प्रतिरोध की क्षमता और जागरूकता आई है.'' जोधपुर में एक बैंक मैनेजर ने अपने बेटे की शादी के कार्ड पर महात्मा बुद्ध की फोटो और बौद्ध धर्म के श्लोक उकेर दिए.

उदयपुर जिले के बिजली विभाग के अधिकारी के परिवार में हो रही शादी के कार्ड पर बुद्ध से लेकर ज्योतिबा फुले और कांशीराम को प्रकाशित करवा कर न्यौता भेजा गया है. वहीं जयपुर जिले के एक रिटायर्ड अधिकारी के बेटे के शादी कार्ड पर "हम भूल न जाएं हमारे महापुरुषों और अपने इतिहास को'' की हिदायत भी छपी है. शादी-विवाह के कार्ड पर छपने वाले ऐसे महापुरुषों में संत कबीर और संत रविदास भी शामिल हैं.

राजस्थान में दलितों-वंचितों के लिए काम करने वाले धर्मेंद्र कुमार जाटव का कहना है, "सोशल मीडिया ने भी इस तरह के सांस्कृतिक प्रतिरोध का चलन बढ़ाने में मदद की है. आज दलित युवा मजबूती से खुद को अभिव्यक्त कर रहा है और प्रतिरोध के विभिन्न तरीके अपना रहा है. यह भी उसी का हिस्सा है.'' उन्होंने हाल ही में टीम राजस्थान नामक प्लेटफॉर्म खड़ा किया है, जिसमें गुजरात के जिग्नेश मेवाणी को भी आमंत्रित किया गया था.

धर्मेंद्र के मुताबिक, आज युवा व्हाट्सऐप-फेसबुक वगैरह के तत्काल जुड़ जाता है और चाहे महाराष्ट्र, यूपी हो या कहीं और, देशभर के लोगों से जुड़ जाता है. वे इस तरह के ट्रेंड के विकसित होने में इसे बेहद अहम मानते हैं.

जाहिर है, हिंदू धर्म को लेकर दलितों में उभरे विद्रोह का यह तरीका भी है. जोधपुर के जयनाराण व्यास विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अरविंद परिहार कहते हैं, "अपने अधिकारों के नुक्सान के भय से उपजा विरोध अब दलित वर्ग को अलग पंथ की ओर ले जा रहा है.''

जाहिर है, वे इसे दलितों की ओर से हिंदू धर्म से इतर अलग पंथ खड़ा करने के रूप में देख रहे हैं. वे कहते हैं, "आने वाले वर्षों में इस ट्रेंड के परिणाम गंभीर हो सकते हैं.'' हिंदू धर्म की सामाजिक संरचना में दिख रहे इस बदलाव पर इसी विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री कमल सिंह राठौड़ कहते हैं, "यह सारी जद्दोजहद वर्चस्व को लेकर है, पहले पद्मावती के विरोध में राजपूत आए और अब असुरक्षा के भय से दलित.'' दलितों में आक्रोश अपने नेताओं को लेकर भी है.

 उनके मुताबिक, एससी-एसटी ऐक्ट पर फैसले के बाद नेताओं ने कुछ नहीं किया, उनकी आंख 2 अप्रैल के भारत बंद से खुली. जोधपुर में भारत बंद की अगुआई करने वाले तुलसीदास राज कहते हैं, "वैदिक काल में तो दलितों को हिंदू धर्म का हिस्सा ही नहीं माना गया. आने वाले दिनों में दलित समाज हिंदू धर्म में अपनी नई दिशा तय करेगा. अब दलित जाग गए हैं और शादी कार्ड पर बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर छपवाना इस जागृति की एक बानगी भर है.''

जोधपुर हाइकोर्ट के वकील के.एल. चौहान की राय भी ऐसी ही है. उनके मुताबिक, शादी का कार्ड एक क्रांति की शुरुआत है और अब दलित समाज शिक्षित हो गया है. वे कहते हैं, "दलित बाबा साहेब की कही बात "मंदिरों की तरफ  नहीं, पुस्तकालयों की तरफ जाओ'' का अनुसरण कर रहे हैं.

दलितों ने मंदिरों में जाकर देख लिया, कुछ नहीं मिला. जो दिया बाबा साहेब ने दिया. अब समाज सिर्फ बाबा साहेब की बातों पर ही चलेगा.'' यह प्रतिरोध सिर्फ विवाह परंपराओं तक नहीं बल्कि राजनैतिक तौर पर भी दिख रहा है. 2 अप्रैल के भारत बंद के दौरान गिरफ्तार हुए दलितों का रिहा होने पर जोरदार स्वागत किया जा रहा है. वहीं सत्येंद्र, धर्मेंद्र और भंवर मेघवंशी जैसे लोगों का मानना है कि इन घटनाक्रमों ने दलितों के आपसी मतभेदों को भी खत्म किया है और उन्हें एकजुट किया है.

दलितों के कामयाब भारत बंद ने भाजपा सरकार को भी आशंकित कर दिया है. वह उन्हें लुभाने की कोशिश भी कर रही है. 14 अप्रैल को वसुंधरा राजे सरकार ने प्रदेश की सभी नगरपालिकाओं में आंबेडकर भवन बनाने की शुरूआत की. लेकिन दलितों की नाराजगी कम होती नहीं दिखाई दे रही है.

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