मध्य प्रदेश के भाजपा नेताओं को अमित शाह की नसीहत
शाह का दौरा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी रणनीति तय करने के लिए राज्यों की यात्रा का हिस्सा था. मध्य प्रदेश सरीखे सूबों में अपनी पकड़ कायम रखना भगवा गेमप्लान के लिए बेहद अहम है.

अगस्त की 18 तारीख को अमित शाह के आगमन से पहले भोपाल के भाजपा नेताओं में घबराहट साफ महसूस दिख रही थी. शिवराज सिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों ने जाहिरा तौर पर अपने मातहतों के साथ घंटों बैठकें कीं. महकमों के मुद्दों को झाड़-बुहार कर चमकाया और ठीक ही किया. एक दिन की देरी से (वे दिल्ली से अपनी उड़ान चूक गए थे) शहर में आए बीजेपी अध्यक्ष को बस काम से मतलब था. यहां तक कि उन्होंने कुछ नेताओं के लंबे स्वागत भाषणों को भी बीच में ही रुकवा दिया.
शाह का दौरा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी रणनीति तय करने के लिए राज्यों की यात्रा का हिस्सा था. मध्य प्रदेश सरीखे सूबों में अपनी पकड़ कायम रखना भगवा गेमप्लान के लिए बेहद अहम है. राज्य में 2018 में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. भोपाल में तीन दिनों के दौरान विभिन्न बैठकों में भाजपा प्रमुख ने मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों को चेता दिया था कि बातचीत का कोई भी ब्योरा प्रेस को कतई न बताएं. फिर भी स्थानीय अखबारों ने अल्टीमेटम जारी करने और खराब काम करने वाले मंत्रियों को चेतावनी की रिपोर्टें छापीं. बाद में मीडिया से बात करते हुए शाह ने इन रिपोर्टों को अटकल कहकर खारिज कर दिया. हालांकि उन्होंने 'खामोश रहने के हुक्म' की तस्दीक जरूर की और कहा कि यह 'अनुशासन के लिए जरूरी' था.
शाह ने प्रदेश में संभावित नेतृत्व परिवर्तन की अफवाहों को भी खारिज किया. उन्होंने कहा कि चौहान अगले साल चुनाव में पार्टी का चेहरा होंगे. दिलचस्प यह है कि उन्होंने ऐसा वादा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बने रहने के बारे में नहीं किया.
मुख्यमंत्री के साथ शाह के रिश्तों को खासकर व्यापम घोटाले की शर्मिंदगी और किसान आंदोलन के जोर पकडऩे के बाद अक्सर 'उत्साहहीन' रिश्तों के तौर पर देखा जाता है. इसके बावजूद उन्होंने चौहान की तारीफ के पुल बांधे और मध्य प्रदेश को बीमारू (पिछड़े) राज्यों के दर्जे से बाहर लाने के लिए उनकी पीठ थपथपाई. उन्होंने विधानसभा चुनावों से पहले मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल के विस्तार की संभावना पर भी कुछ कहने से मना कर दिया.
उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल में खाली छह जगहों को भरना मुख्यमंत्री चौहान का विशेषाधिकार है. ये महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि माना जा रहा था कि राज्यों की बैठकों के माध्यम से शाह नेतृत्व के काबिल चेहरे भी तलाश रहे हैं. स्थानीय नेताओं के साथ बैठकों में शाह ने राज्य की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने पर जोर दिया. भाजपा प्रमुख की तकरीरों में गुना और छिंदवाड़ा की सीटों को जीतना भी शामिल था, जो लंबे अरसे से कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमल नाथ का गढ़ रही हैं और 2014 की नरेंद्र मोदी लहर में भी इन्हें छीना नहीं जा सका था.