अनुराग कश्यप ने बताया, आखिर उन्हें विलेन वाले किरदारों में ही क्यों लिया जाता है?

हालांकि अनुराग कश्यप यह स्पष्ट करते हैं कि अभिनेता बनने की उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि वे तो स्क्रिप्ट तक नहीं सुनते

महाराजा के एक सीन में अनुराग कश्यप
महाराजा के एक सीन में अनुराग कश्यप

कोई फिल्मकार आखिर कितना व्यस्त हो सकता है? अनुराग कश्यप इस साल सात फिल्मों में अदाकारी कर रहे हैं. वे दो फिल्मों का निर्देशन भी कर रहे हैं. बीच-बीच में वे दुनिया भर के फिल्म स्कूलों में पढ़ाने जाते हैं. बीते पांच साल में कश्यप को दिल के दो दौरे पड़ चुके हैं और इन दिनों अस्थमा के दौरों और स्लीप एप्निया से तालमेल बिठा रहे हैं. वे 51 साल की उम्र में बिना रुके काम करते हुए फिल्मी दुनिया के लिए प्रेरणा बने हुए हैं.

कश्यप कहते हैं, ''मैं काम करता हूं. मैं करने में यकीन करता हूं. मैं अपनी सेहत पर ध्यान देना चाहता हूं, पर कई लोग मेरे आसरे हैं. मैं नियंत्रित लागत की फिल्में बनाता हूं, इसलिए तीन-चार साल घर बैठकर कुछ लिखता नहीं रह सकता. मुझे लगातार कुछ न कुछ करते ही रहना होगा, पैसे के लिए न सही, घर से बाहर निकलकर व्यस्त रहने के लिए ही सही. दरअसल, मैं घर पर होता हूं तो मेरी बीमारी मुझ पर हावी हो जाती है. सेट पर मुझमें जोश रहता है."

उनके इस जोश का पहला धमाका जून में तमिल थ्रिलर महाराजा और हिंदी वेबसीरीज बैड कॉप में दिखा. विजय सेतुपति की अदाकारी से सजी महाराजा में कश्यप ने सेंधमार-बलात्कारी की भूमिका अदा की है. इस रिवेंज-ड्रामा ने 100 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाए. बैड कॉप में कश्यप सीखचों के पीछे से सक्रिय गैंगस्टर बने हैं. आने वाली तमिल थ्रिलर फिल्म वन 2 वन में भी कश्यप खलनायक की भूमिका निभा रहे हैं.

अनुराग कश्यप

आखिर उन्हें खलनायकी वाले किरदारों में ही क्यों लिया जाता है? वे हैरानी जाहिर करते हुए हंसकर कहते हैं, "इसका कुछ न कुछ वास्ता मेरे चेहरे से होगा." वे याद करते हैं कि फिल्मों में अभिनय की उनकी शुरुआत ए.आर. मुरुगदास के साथ उनकी हिंदी थ्रिलर अकीरा से हुई, जिसमें उन्होंने भ्रष्ट पुलिस वाले की भूमिका निभाई.

कश्यप कहते हैं, "बॉम्बे वेलवेट (उनकी निर्देशित 2015 की क्राइम ड्रामा फिल्म) फ्लॉप हो गई. मुझ पर प्रोड्यूसरों का बहुत पैसा बकाया था. कुछ प्रोड्यूसर अकीरा बना रहे थे. अगर मैं फिल्म करता तो पैसा एडजस्ट हो सकता था. तो यूं कहिए कि एक से दूसरी चीज होती गई."

लेकिन कश्यप यह स्पष्ट करते हैं कि अभिनेता बनने की उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं. दरअसल, वे स्क्रिप्ट तक नहीं सुनते और न ही उन्हें कहानी के बारे में पता होता है. वे बस अभिनय करते हैं. उन्हीं के शब्दों में, "मैं जिस तरह अभिनय करता हूं, वैसे ही अपने अभिनेताओं को निर्देशित भी करता हूं. हर अभिनेता के किरदार की अपनी एक गति और ग्राफ होता है."

वे आगे बताते हैं, "एक अभिनेता को दूसरे अभिनेताओं के कैरेक्टर के ग्राफ और दायरे को क्यों जानना चाहिए? वे तो बस उतना ही जानें जितनी कि उन्हें जानने की जरूरत है. अगर उन्हें बहुत सारी जानकारियां मिल गईं तो वे अपने अभिनय में उसी हिसाब से काट-छांट कर लेंगे. वे असल नहीं होंगे. कोई भी हीरो या विलेन नहीं होता. हर किसी का अपना एक फ्रेम होता है. हर कोई अपने आप में नायक होता है. जब आप इन लोगों को साथ रखते हैं, तो जो कहानी निकलकर आती है, वही फिल्म है."

गोरखपुर में पैदा हुए कश्यप ने 1990 के दशक के शुरुआती सालों में फिल्म उद्योग में आने के लिए अदाकारी सीखी. वे याद करते हैं, "किसी ने मुझसे कहा कि तुम्हें पोर्टफोलियो शूट करवाकर फिल्म वालों के पास जाना चाहिए. मैं अभिनय नहीं करना चाहता था लेकिन मुझे लगा कि अभिनय ही फिल्मों में आने का अकेला तरीका था."

कश्यप के अभिनय का सफर जननाट्य मंच के साथ शुरू हुआ. उन दिनों वे दिल्ली में जूलॉजी (जंतु विज्ञान) के छात्र थे. 1993 से 2007 के बीच उन्होंने अभिनय बस तब तक किया, जब "मेरी निर्देशित फिल्में रिलीज नहीं होने लगीं और मैंने थिएटर पूरी तरह बंद नहीं कर दिया." अभिनेता के तौर पर उनकी आने वाली फिल्मों में तमिल प्रोडक्शन और जाने-माने मलयालम निर्देशक आशिक अबू की राइफल क्लब शामिल है. निर्देशक के रूप में उनके दो प्रोजेक्ट्स में से एक फिल्म की पटकथा पाताल लोक के रचयिता सुदीप शर्मा ने लिखी है.

कभी ट्विटर के दीवाने रहे कश्यप अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अब भी देश भर से जुड़ी खबरों पर गहरी नजर रखते हैं, खासकर अगर वे सिनेमा से जुड़ी हों.

कान 2024 में ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट के लिए पायल कपाड़िया की ऐतिहासिक 'ग्रां प्री' जीत के बारे में कश्यप गरजते हुए कहते हैं, "भारतीयों को शर्म आनी चाहिए कि वे शानदार फिल्मों का समर्थन नहीं करते. इस साल कान में वाहवाही बटोरने वाली सारी फिल्में विदेशी को-प्रोडक्शन वाली हैं. मगर भारत जीत जाने के बाद उनका जश्न मनाएगा."

वे आगे बताते हैं, "पायल अब भी वह केस लड़ रही है जो फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने उसके और दूसरों के खिलाफ चेयरमैन के तौर पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति का विरोध करने के लिए दायर किया है. 200 पन्नों की चार्जशीट है जो अब भी वापस नहीं ली गई है. किसी भी तरह का सहयोग न करने वाली सरकार अब उसकी जीत का फायदा उठा रही है."

कश्यप बताते हैं कि मुंबई फिल्म उद्योग राजनैतिक कारणों के अलावा बहुत बड़ा पैसा दांव पर लगा होने की वजह से किसी भी ऐसी फिल्म को सहारा देने से कतराता है जो थोड़ी भी बंधी-बंधाई लीक से हटकर हो. सुकेतु मेहता के उपन्यास पर आधारित कश्यप का ड्रीम प्रोजेक्ट मैक्सिमम सिटी 15 साल से बन ही रहा है. क्या अब भी उन्हें इसके बन पाने की उम्मीद है?

कश्यप कहते हैं, "मैं 15 साल से मैक्सिमम सिटी बनाने की कोशिश कर रहा हूं, तो अब मैं भला क्यों रुकूंगा? बड़े-बड़े स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म भारत में महान कला के निर्माण के लिए नहीं आए हैं बल्कि वे 1.4 अरब से ज्यादा आबादी को सब्सक्राइबर बनाने की कोशिश करने में हैं. इसकी हरी झंडी दिखाने वाले फैसले एल्गोरिद्म पर आधारित होते हैं, सिनेमा के जुनून पर नहीं. यह नई दुनिया है, और हमें फिल्म बनाने के अपने तरीके खोजने ही होंगे. या हम भी वही पुराना खेल खेलना शुरू कर दें. यह हम पर है."

—देवर्षि घोष

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