देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में मोदी सरकार की वापसी के हर आसार
इंडिया टुडे के विशेष छमाही सर्वेक्षण (देश का मिज़ाज सर्वेक्षण-2023) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के तीसरी बार सत्ता में वापसी के आसार. लेकिन महंगाई और बेरोजगारी जैसे आर्थिक मसले चिंता का सबब बने हुए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई खूबियां हैं, अति-आत्मविश्वास उनमें एक है. दूसरी है मौकों का फायदा उठाने और उन्हें अपना बना लेने की हैरतअंगेज क्षमता. इस 15 अगस्त को जब वे लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अपने लगातार 10वें संबोधन के लिए खड़े हुए, तो उन्होंने अपना प्रभावी रिपोर्ट कार्ड पेश किया और बताया कि 2014 के बाद उन्होंने और उनकी सरकार ने क्या-क्या हासिल किया है.
अपनी सारी उपलब्धियों को उन्होंने आकर्षक नारे—''रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म''—के धागे में पिरोया और उम्मीद यही है कि इसका इस्तेमाल वे 2024 के लोकसभा चुनाव के अपने प्रचार अभियान में भी करेंगे. फिर उन्होंने बताया कि आजादी के 100 साल का जश्न मनाते वक्त 2047 में विकसित भारत की ओर देश के महाप्रयाण में अगले पांच साल बेहद अहम क्यों हैं. मगर प्रधानमंत्री का असल संदेश पंचलाइन में था.
उन्होंने कहा, ''अगले साल मैं इसी लाल किले से आपके समक्ष राष्ट्र की उपलब्धियों और प्रगति का लेखा-जोखा प्रस्तुत करूंगा.'' यह दुस्साहसी दावा था, खासकर ऐसे प्रधानमंत्री की तरफ से जो अपने दो कार्यकाल के आखिरी पड़ाव में है जहां सत्ता-विरोधी रुझान अच्छे से अच्छे नेता के सिर पर मंडरा रहा होता है.
भारत में बहुत ही कम नेताओं को लगातार तीसरा कार्यकाल मिला है. यह साफ था कि मोदी के पूर्ववर्ती डॉ. मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी साल में शक्तिहीन हो चुके थे और उनकी पार्टी कांग्रेस पराजय की तरफ बढ़ रही थी. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन कार्यकाल जरूर जीते, पर उनका पहला कार्यकाल महज 13 दिनों का था, तीन साल के अंतराल के बाद दूसरा कार्यकाल महज एक साल से कुछ ज्यादा चला, और 1999 से 2004 के बीच अपने तीसरे कार्यकाल में ही वे प्रधानमंत्री के रूप में एक कार्यकाल पूरा कर पाए. इंदिरा गांधी 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार सत्ता में रहीं, पर पार्टी को लगातार तीन बार संसद में बहुमत दिलवाने का गौरव उन्हें कभी हासिल नहीं हुआ. यह सम्मान अभी तक सिर्फ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को मिला है, जिन्होंने 1947 से 1964 तक राज किया और कांग्रेस पार्टी के लिए लगातार तीन बार बहुमत जीते—1952, 1957 और 1964 में.
अगर सब ठीक रहा तो मोदी मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में चुनावी इतिहास रचेंगे. साल में दो बार किए जाने वाले इंडिया टुडे-सी-वोटर देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण के अगस्त 2023 के संस्करण का अनुमान है कि मोदी और उनकी पार्टी भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ लगातार तीसरी जीत की तरफ बढ़ रहे हैं.
भाजपा के अपने दम पर 287 सीटें जीतने की उम्मीद है, जो हालांकि उन 303 सीटों से कम हैं जो उसने 2019 में अपने दम पर जीती थीं, पर तो भी 543 सदस्यों की लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों से 15 ज्यादा हैं. भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को कुल 306 सीटें मिलने की उम्मीद बताई गई है, जो 2019 में उसे मिली 353 सीटों से 47 कम हैं. यह कमी बताती है कि हाल में उनकी संख्या बढ़ाने की तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा के सहयोगी दलों की संख्या घटी है, जो पार्टी और प्रधानमंत्री के लिए चिंता का सबब होना चाहिए.
अहम बात यह है कि ये नतीजे ऐसे वक्त आए हैं जब लगता है विपक्ष ने अपने को बेहतर ढंग से संगठित किया है. उन्होंने एक गठबंधन बनाया है जिसे चालाकी से इंडिया, या इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (आइएनडीआइए) कहा गया है और जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अगुआई वाले पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के सदस्य शामिल हैं. यह नई साज-सज्जा फायदेमंद साबित हुई है, खासकर जब जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के साथ आ जाने के बाद देश का मिज़ाज सर्वेक्षण ने इंडिया गठजोड़ को 193 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है, जो 2019 में तत्कालीन यूपीए को मिली सीटों से 102 ज्यादा है. कांग्रेस हालांकि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी रहेगी, पर देश की सबसे पुरानी पार्टी के मुकाबले दूसरे दलों की सीटों में कहीं ज्यादा इजाफा होगा. हमारा सर्वे दिखाता है कि कांग्रेस को 22 सीटों का फायदा होगा और वह 52 से 74 पर पहुंच जाएगी.
इंडिया के 41 फीसद वोटों के बावजूद, जो एनडीए के वोटों से महज 1.6 फीसद अंक ही कम है, उसके वोट इस तरह बिखरे और फैले हुए होंगे कि उसकी सीटों की संख्या सत्तारूढ़ गठबंधन की सीटों से काफी कम होगी. अलबत्ता एनडीए के लिए भी एक चेतावनी है: जीत-हार के वोटों का गिरता अंतर चुनाव अभियान के आखिरी दौर में प्रवेश करने पर चुनौती पेश कर सकता है.
भाजपा के लिए थोड़े सुकून की बात यह है कि कुछ सहयोगी दलों के छोड़कर चले जाने के बाद उसने आहिस्ता-आहिस्ता खोई जमीन फिर हासिल की है. अगस्त 2021 के देश का मिज़ाज सर्वे में उसकी सीटों की संख्या घटकर 269 पर आ गई थी, जो खतरनाक ढंग से बहुमत से कम थी. यह कुछ हद तक कोविड-19 महामारी के दौरान जीवन और आजीविकाएं गंवाए जाने की वजह से हुआ था. उसके बाद भाजपा ने अपने संख्या बल को फिर से खड़ा किया और 287 सीटों का उसका मौजूदा आंकड़ा जनवरी 2023 के आंकड़े से चार सीट ज्यादा है. बढ़त का यह रुझान सत्तारूढ़ पार्टी के लिए अच्छा संकेत ही हो सकता है, जो सत्ता-विरोधी रुझान के उलटने की तरफ इशारा करता है.
इसके विपरीत जब यूपीए ने 2013 में अपने 10वें साल में कदम रखा था, उस साल अगस्त में आए देश का मिज़ाज सर्वे में उसकी सीटों की संख्या 259 सीटों से घटकर 137 पर आ गई थी और भाजपा की सीटों में बढ़ोतरी हुई थी. जनवरी 2014 के सर्वे में 103 सीटों के साथ यूपीए का खराब प्रदर्शन जारी रहा. चार महीने बाद जब वास्तविक चुनाव के नतीजे आए, जनादेश और भी ज्यादा भयानक था—उसकी सीटें 2009 की 262 से घटकर महज 59 पर आ गईं. कांग्रेस की सीटें आजादी के बाद अपने बदतरीन स्तर पर आ गिरीं—2009 में 206 से 44 पर.
देश का मिज़ाज सर्वे किसी भी और चीज से ज्यादा नरेंद्र मोदी की लगातार कायम निजी लोकप्रियता और प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कामकाज को अंकित करता है, जो लोकसभा चुनाव के पूर्वानुमानों में भाजपा के एक और बड़ी जीत तक पहुंचने की सबसे अव्वल वजह है. मौजूदा सर्वे में जब प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के कामकाज को आंकने के लिए कहा गया, तो 62.7 फीसद ने इसे अच्छा या असाधारण आंका. यह आंकड़ा जनवरी 2023 में मोदी को मिले 71.6 फीसद समर्थन जितना ज्यादा भले न हो, और कोविड की पहली लहर के ऐन बीचोबीच अगस्त 2020 में 78 फीसद के शिखर से काफी कम हो, पर अगस्त 2021 में 54 फीसद की गिरावट को छोड़कर प्रधानमंत्री ने मई 2019 में शुरू अपनी पूरी दूसरी पारी के दौरान अपनी रेटिंग 60 फीसद के ऊपर बनाए रखी है.
यह तारीफ के काबिल रिकॉर्ड है, खासकर जब उनकी निजी लोकप्रियता के साथ इस पर विचार किया जाए. जब पूछा गया कि 2024 में कौन भारत का प्रधानमंत्री होने के सबसे ज्यादा योग्य है, तो बहुमत (52.3 फीसद) ने मोदी के नाम पर मोहर लगाई. पिछले चार देश का मिज़ाज सर्वे में उनकी रेटिंग 50 फीसद से ज्यादा की ऊंचाई पर रही है, जो अगस्त 2021 के देश का मिज़ाज सर्वे में 24 फीसद तक गिर जाने के बाद उस गर्त से निकलने के मामले में उल्लेखनीय सुधार है. एनडीए सरकार के कामकाज का भी अनुमोदन किया गया है, जहां 58.7 फीसद ने कहा कि वे संतुष्ट या बहुत संतुष्ट हैं. हालांकि यह जनवरी 2023 के देश का मिज़ाज सर्वे के मुकाबले 10 फीसद अंकों की गिरावट है, पर 50 फीसद से ऊपर कोई भी रेटिंग उस सरकार के लिए अच्छी मानी जाएगी जो नौ से ज्यादा साल से सत्ता में है.
भाजपा अगर आने वाले लोकसभा चुनाव को राष्ट्रपति शैली के मुकाबले में बदल सके, जिसमें मुकाबला मोदी बनाम बाकी सब हो, तो उसे सबसे ज्यादा फायदा मिलने की संभावना है. जब पूछा गया कि भाजपा को वोट क्यों देंगे, तो 44 फीसद लोगों ने कहा कि वे मोदी की वजह से देंगे, जबकि 21.7 फीसद ने विकास को इसकी वजह बताया. दिलचस्प यह है कि केवल 14.3 फीसद ने कहा कि वे हिंदुत्व की झंडाबरदारी की वजह से भाजपा को वोट देंगे और महज 8.2 फीसद ने कल्याण योजनाओं की वजह से उसे वोट देने की बात कही. देश का मिज़ाज सर्वे का एक और निष्कर्ष बताता है कि मोदी का तुरुप के तौर पर होना भाजपा के लिए फायदेमंद क्यों है. उनके और उनके निकटमत प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी के बीच 36.5 फीसद अंकों का भारी-भरकम फासला है, क्योंकि महज 15.8 फीसद को लगता है कि कांग्रेस के वंशज देश के अगले प्रधानमंत्री होने के लिए सबसे उपयुक्त हैं.
राहुल की रेटिंग में हालांकि पिछले साल उनकी भारत जोड़ो यात्रा के बाद सुधार हुआ है. यात्रा की शुरुआत से पहले अगस्त 2022 के देश का मिज़ाज सर्वे में उन्हें 9.3 फीसद वोट मिले थे, जिसमें इस लंबी पैदल यात्रा की बदौलत 6.5 फीसद अंकों की बढ़ोतरी हुई है. इससे मोदी के साथ फासला कम करने भले थोड़ी-सी ही मदद मिली हो, पर इसमें कोई शक नहीं कि भारत जोड़ो यात्रा ने मोदी के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में अपनी स्थिति फिर हासिल करने में राहुल की मदद की है. राहुल ने ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया. मौजूदा सर्वे में 23.6 फीसद लोगों ने कहा कि विपक्ष के मौजूदा नेताओं मंी वही विपक्षी गठबंधन की अगुआई करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं. ममता और केजरीवाल को क्रमश: 14.8 फीसद और 14.6 फीसद वोट मिले.
महज एक साल पहले अगस्त 2022 के देश का मिज़ाज सर्वे में केजरीवाल 27 फीसद के साथ शीर्ष पर थे, तो ममता 19.6 फीसद के साथ दूसरी पायदान पर थीं, जबकि राहुल 12.7 फीसद के साथ तीसरी पायदान पर थे. राहुल एक बार फिर अपनी पार्टी के निर्देंवद्व नेता के तौर पर उभरे हैं. 32.4 फीसद लोग उन्हें कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए सबसे अच्छे नेता के तौर पर देखते हैं, जबकि इसके मुकाबले 12.2 फीसद सचिन पायलट को इस रूप में देखते हैं. दोनों नेताओं के बीच 20.2 फीसद अंकों का यह फासला भारत जोड़ो यात्रा से पहले अगस्त 2022 के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा हो गया है.
सर्वे के नतीजों का राज्यवार विश्लेषण करने पर पता चलता है कि ओडिशा और असम में एनडीए को बहुत थोड़ा ही फायदा हुआ है, पर वह उत्तर प्रदेश से और ज्यादा सीटें अपनी झोली में बटोर सकता है. दूसरी तरफ, इंडिया को महाराष्ट्र और बिहार में जबरदस्त फायदा मिलता दिख रहा है, लेकिन हैरत की बात यह है कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत से उसे संसदीय चुनाव में कोई लाभ मिलता दिखाई नहीं देता. संभावना यही है कि भाजपा कर्नाटक की 28 और हिमाचल की चार लोकसभा सीटों में से ज्यादातर जीत लेगी, जैसे उसने पिछले बार जीती थीं. देश का मिज़ाज सर्वे से यह भी संकेत मिलता है कि अगर कांग्रेस इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश जीत ले, और छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में अपनी सत्ता कायम रखे, तब भी भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव के नतीजों पर कोई असर पडऩे की संभावना नहीं है.
पार्टी इन तीनों राज्यों की कुल 65 सीटों में से ज्यादातर बटोर लेगी, जैसा उसने 2019 में उससे विगत वर्ष हुए इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद भी किया था. अलबत्ता अगर इंडिया के सहयोगी दलों के बीच चुनाव से पहले सीटों की साझेदारी हो जाती है, तो उन्हें केरल, पश्चिम बंगाल और थोड़ा-सा उत्तर प्रदेश में फायदा हो सकता है. बहुमत के निशान से ऊपर महज 15 सीटों का अंतर भाजपा को निश्चित रूप से सांसत में डाल सकता है क्योंकि कुछेक राज्यों में भी सीटें कम होने पर वह बहुमत के आंकड़े से नीचे आ जाएगी, जो उसे गठबंधन की मजबूरियों के आगे लाचार बना सकता है.
मोदी और भाजपा 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की दौड़ में सबसे आगे दिख रहे हैं, और देश का मिज़ाज सर्वे के नतीजों में उनके लिए दोनों पहलुओं के लिहाज से कई निहितार्थ छिपे हैं. सकारात्मक पहलू की बात करें तो मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि पूछे जाने पर 21.1 फीसद लोगों ने कोविड-19 महामारी से निबटने को शीर्ष स्थान दिया. महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान देश जिस गहरे तनाव से गुजर रहा था, उसके मद्देनजर इसे सराहनीय कहा भी जाएगा. खासकर तब जबकि कई बार खुद सरकार भी लड़खड़ाई हो. हालांकि, कुल मिलाकर, लगता है कि मोदी और उनकी सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े संकटों में से एक के दौरान देश को जिस तरह संभाला, उसके लिए उन्हें सराहना हासिल हुई है. इस सरकार के अपेक्षाकृत भ्रष्टाचार मुक्त होने की धारणा इसकी उपलब्धियों की सूची में दूसरे स्थान पर है, और 12.7 फीसद लोगों ने इसे शीर्ष उपलब्धि के तौर पर सूचीबद्ध किया है.
यह दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में घोटालों से घिरी यूपीए सरकार की धारणा के एकदम उलट है और मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन के दौरान सरकार की साफ-सुथरी छवि का दम भी भरा. अनुच्छेद 370 हटाना और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को सरकार की उपलब्धियों की सूची में क्रमश: तीसरा और चौथा स्थान मिला है, जिससे पता चलता है कि भाजपा का मूल मतदाता मोदी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड से खुश है. माना जा रहा है कि कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास के अलावा ये तीन फैक्टर—कोविड से निबटना, भ्रष्टाचार मुक्त शासन और हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाना—भी मोदी सरकार के लिए प्रमुख चुनावी मुद्दे बन सकते हैं.
मौजूदा सर्वे में लोगों का मानना है कि भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का मोदी का वादा 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए सबसे अधिक फायदेमंद साबित हो सकता है. इसके अलावा, लोगों ने चीन-पाकिस्तान से निबटने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद बढ़ाने और जी-20 की अध्यक्षता को बेहतरीन ढंग से संभालने के लिए भी मोदी सरकार की सराहना की है.
बहरहाल, मोदी सरकार को अपने कार्यकाल के बाकी बचे नौ महीनों में बुनियादी ढांचे और कल्याणकारी योजनाओं के मोर्चे पर शुरू किए गए सभी प्रमुख कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. हालांकि, सरकार के साथ जुड़े लोगों की मानें तो मोदी अपने एजेंडे पर पूरी तरह फोकस कर रहे हैं. प्रमुख सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने इंडिया टुडे को बताया, ''प्रधानमंत्री का मानना है कि इन दो कार्यकालों में देश के विकास की मजबूत नींव रखी गई है. अगले पांच वर्षों में उनकी योजना उसे और मजबूत करने की है, ताकि 2047 तक समावेशी, एकीकृत तथा एकजुट विकसित देश का दृष्टिकोण हासिल हो.''
अब बात, देश का मिज़ाज सर्वे में सत्तारूढ़ दल के लिए उभरी चेतावनियों की. महंगाई और बेरोजगारी सरकार के लिए दो बड़े अभिशाप बने हुए हैं, जो सरकार की नाकामी की सूची में शीर्ष पर हैं. आर्थिक विकास में कमी तीसरे स्थान पर है. सर्वे के अन्य निष्कर्षों में प्रमुख आर्थिक मसलों से निबटने को लेकर गहरी चिंताएं भी उभरकर सामने आती हैं. अर्थव्यवस्था को संभालने के तौर-तरीकों को लेकर सरकार की रेटिंग में गिरावट आई है, केवल 46.6 फीसद लोगों ने इसे असाधारण या अच्छा बताया, जबकि जनवरी 2023 के सर्वे में यह आंकड़ा 53.9 फीसद था. सिर्फ 29.5 फीसद लोगों ने माना कि 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है, जबकि 28.1 फीसद का कहना है कि उनकी आर्थिक हालत जस की तस है और 38 फीसद की राय में यह खराब हुई है. ये निष्कर्ष दर्शाते हैं कि मोदी 'अच्छे दिन' के अपने वादे पर खरे उतरने में नाकाम रहे हैं, जो उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालते वक्त किया था.
निकट भविष्य की संभावनाओं पर देश का मिज़ाज सर्वे में लोगों का नजरिया निराशावादी बना हुआ है, और करीब एक-तिहाई (33.8 फीसद) का कहना है कि अर्थव्यवस्था अगली छमाही में और बदतर होगी. अधिकांश (69 फीसद) लोगों को अगले छह माह में परिवार की आय या वेतन में सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती; 60 फीसद से अधिक का कहना है कि उनके लिए अपने खर्चे पूरा कर पाना मुश्किल हो गया है. बहुमत राय (55.5 फीसद) यही है कि बेरोजगारी की स्थिति बहुत गंभीर है और केवल 30 फीसद मोदी सरकार की रोजगार सृजन के लिए सराहते हैं.
सरकार के प्रतिकूल दूसरी धारणा यह है कि 55.4 फीसद लोगों की राय में एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों का फायदा बड़े कारोबारी घरानों को मिला है, जबकि छोट कारोबारियों, वेतनभोगी वर्ग, किसानों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए ये नुक्सानदेह हैं. यह धारणा पिछले चार देश का मिज़ाज सर्वे में लगातार एक जैसी बनी हुई है. सरकार के खिलाफ यह भी है, कि बहुमत (47 फीसद) को राहुल गांधी के इस आरोप में सच्चाई दिखती है कि भाजपा अदाणी समूह और अन्य बड़े व्यापारिक घरानों के हितों के पक्ष में है.
कई प्रमुख सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर भी मोदी सरकार आलोचनाओं के घेरे में है. मणिपुर के जातीय संकट के लिए 30 फीसद केंद्र सरकार को जिम्मेदार मानते हैं, जबकि 25 फीसदा इसका ठीकरा राज्य के सिर पर फोड़ते हैं. बहुमत (43.8 फीसद) वार्ता प्रक्रिया में तेजी और न्यायिक जांच के अलावा मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने और राष्ट्रपति शासन लगाने का समर्थन करता है.
दूसरे मुद्दे भी हैं जिन पर सरकार का कामकाज से लोग राजी नहीं हैं. बहुमत (55.8 फीसद) जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के पक्ष में है. दिलचस्प यह भी है कि 31.2 फीसद अनुच्छेद 370 की बहाली भी चाहते हैं. कुश्ती महासंघ अध्यक्ष तथा भाजपा सांसद पर यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के सरकार के तरीके से भी लोग खफा हैं. तकरीबन 45.2 फीसद लोग यह भी सोचते हैं कि भाजपा सरकार ने पिछली सरकारों की तुलना में प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और आयकर विभाग जैसी एजेंसियों का अधिक दुरुपयोग किया है और गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल का रवैया पक्षपातपूर्ण रहा है. तकरीबन 49.8 फीसद लोग मानते हैं कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है. 41.4 फीसद के मुताबिक, एनडीए सरकार में सांप्रदायिक सद्भाव सुधरा है, जबकि 34.1 फीसद की राय उलट है. खासकर मुसलमान और ईसाई तबके के भारी बहुमत की राय है कि मोदी के राज में सांप्रदायिक स्थिति बदतर हुई है.
हालांकि, इन नकारात्मक धारणाओं के बावजूद देश का मिज़ाज सर्वे 2023 यही दर्शाता है कि इन सभी मुद्दों से निबटने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी पर भरोसा बरकरार है, जो उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता और इस अनुमान से भी जाहिर है कि मोदी और भाजपा लगातार तीसरी बार भारी बहुमत से सत्ता में वापसी करेंगे. कल्याणकारी योजनाओं पर मोदी के प्रभावी रिकॉर्ड को भारी जनसमर्थन हासिल है, उन्हें अपने दूसरे कार्यकाल के बाकी बचे महीनों में कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सद्भाव, आर्थिक मुद्दों, विकास और रोजगार सृजन पर विशेष ध्यान देना होगा.
युवाओं के कौशल विकास जैसे मुद्दों पर तत्काल ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि देश का मिज़ाज सर्वे आर्थिक मोर्चे पर युवाओं के बीच नाखुशी दर्शाता है. छोटे कारोबारों और उद्यमियों को प्रोत्साहित करना एक और जरूरत है. सरकार ग्रामीण रोजगार परिदृश्य में सुधार के अलावा बुनियादी ढांचे और खासकर सार्वजनिक सेवाओं के डिजिटलीकरण के मामले में अपने लक्ष्यों को नजरअंदाज नहीं कर सकती. महंगाई एक और चुनौती है, जिस पर तत्काल काबू पाने के साथ-साथ कृषि उपज और उत्पादकता बढ़ाने पर भी खास ध्यान देना जरूरी है. निर्यात को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि वैश्विक सेवा व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 4 फीसद से कम है, माल व्यापार में यह 2.5 फीसद है और वित्तीय लेनदेन में तो हिस्सेदारी उससे भी कम है.
नेतृत्व की बात करें तो आजादी के बाद से दो प्रधानमंत्रियों के योगदान को खास तौर पर याद किया जाता है. पहले नेहरू, जिन्होंने समाजवादी लोकतांत्रिक भारत का दृष्टिकोण अपनाया और उसी पर कदम बढ़ाते हुए विकास और वैज्ञानिक प्रगति की नींव रखी. फिर वाजपेयी, जिन्होंने अपने सात वर्ष के शासनकाल में मुक्त बाजार और निजी क्षेत्र के दक्षिणपंथी एजेंडे को जोरदार ढंग से आगे बढ़ाया. मोदी पहले दो कार्यकाल में नींव रखने के बाद अब ऐसे राजनेता बनने के मुकाम पर हैं जो एकजुट और सामंजस्यपूर्ण विकसित भारत की स्थायी दृष्टि विकसित करने और उस पर अमल करने वाला साबित हो. उन्हें अपनी इस यात्रा में किसी भी चीज को रुकावट नहीं बनने देना चाहिए.
सर्वेक्षण का तरीका
इंडिया टुडे देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण सामार्जिक-आर्थिक रिसर्च के क्षेत्र में दुनिया भर में प्रतिष्ठित सी-वोटर ने 15 जुलाई, 2023 और 14 अगस्त, 2023 के बीच किया. इसमें सभी राज्यों के सभी लोकसभा क्षेत्रों को समाहित करते हुए 25,951 लोगों से बातचीत की गई. इन सैंपल के अलावा,16 जनवरी, 2023 और 14 अगस्त, 2023 के बीच सी-वोटर के नियमित ट्रैकर डेटा के 1,34,487 बातचीत का विश्लेषण करके लंबे वक्त के रुझान निकाले गए और उनके आधार पर सीट और वोट हिस्सेदारी के अनुमानों को आंका गया. इस तरह इस देश का मिज़ाज सर्वे के लिए कुल 1,60,438 लोगों की राय पर विचार किया गया. कुल 95 फीसद आत्मविश्वास स्तर के साथ त्रुटि की गुंजाइश व्यापक स्तर पर +/-3 फीसद और छोटे स्तर पर +/-5 फीसद है.
सी-वोटर ट्रैकर मई 2009 से ही देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 11 भाषाओं में हर हफ्ते यानी प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में 52 वेब में चलाया जाता है, जिसमें हर तिमाही 50,000 लक्ष्यबद्ध सैंपल आकार है. औसत प्रतिक्रिया दर 55 फीसद है. सी-वोटर 1 जनवरी, 2019 से शुरू करके रोज ट्रैकर चला रहा है, जिसमें ट्रैकर विश्लेषण के लिए सात दिनों के रोलओवर नमूनों का इस्तेमाल किया जाता है.
ये सभी सर्वे दुनिया भर में मानकीकृत पद्धति में प्रयुक्त रैंडम प्रॉबेबिलिटी सैंपल पर आधारित हैं, जो सभी भौगोलिक क्षेत्रों और जनसांख्यिकी हिस्सों में प्रशिक्षित शोधकर्ताओं के हाथों किए जाते हैं. यह सर्वे सभी हिस्सों में वयस्क लोगों से सीएटीआइ बातचीत पर आधारित है. बेतरतीब संख्याएं निकालने के लिए देश के सभी टेलीकॉम क्षेत्रों में सभी ऑपरेटरों को आवंटित सभी फ्रीक्वेंसी शृंखलाओं को समाहित करते हुए मानक आरडीडी का इस्तेमाल किया गया है.
सी-वोटर सांख्यिकीय रूप से डेटा पर विचार करके समुचित प्रातिनिधिक विश्लेषण तय करता है ताकि इसे जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार स्थानीय आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला बनाया जा सके. डेटा को लिंग, आयु, शिक्षा, आय, धर्म, जाति, शहरी/ग्रामीण और पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों में दिए गए वोट को याद करने सहित जनगणना के ज्ञात स्वरूप के आधार पर मापा-तौला जाता है. स्प्लिट वोटर परिघटना के आधार पर प्रांतीय और क्षेत्रीय वोट हिस्सेदारी की गणना के लिए सी-वोटर विश्लेषण के साधन के रूप में अपनी मालिकाना एल्गोरिद्म का प्रयोग करता है.
सी-वोटर वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ पब्लिक ओपिनियन रिसर्च की तरफ से तैयार पेशेवर आचार व प्रथा संहिता तथा जनमत सर्वेक्षणों के बारे में भारतीय प्रेस परिषद की तरफ से निर्देशित आधिकारिक दिशा-निर्देशों का पालन करता है.