नीतीश कुमारः बिहारी बाबू नंबर 1

यह नीतीश की अनूठी सफलता है कि दो धुर विपक्षी भाजपा और राजद के समर्थन से वे सरकारें बना सकते हैं और बनाई भी हैं

सदाबहार नेता तरारी में एक रैली के दौरान सीएम नीतीश कुमार
सदाबहार नेता तरारी में एक रैली के दौरान सीएम नीतीश कुमार

अमिताभ श्रीवास्तव

एक और चुनावी जीत, मुख्यमंत्री के रूप में एक और कार्यकाल. लेकिन नीतीश कुमार यह भी स्वीकार करेंगे कि यह साल वैसा नहीं गया, जैसा सोचा था. पहला संकट मार्च में, कोविड-19 और उससे हुई तबाही के रूप में आया. बिहार के लिए, यह केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं था बल्कि उन 30 लाख से अधिक बिहारियों के लिए एक मानवीय संकट भी बन गया जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार होने के बाद राज्य में वापस लौटे थे.

उनका पुनर्वास चुनौती थी और दूसरे राज्यों में फंसे बिहारी श्रमिकों को राहत के सीधे हस्तांतरण के लिए नीतीश की सराहना हुई वैसे विपक्ष ने इस मुद्दे पर उनकी आलोचना भी की. बिहार सरकार ने संक्रमण को सीमित करने के लिए सैकड़ों क्वारंटीन केंद्र बनाए. एक समय तो इन केंद्रों पर 15 लाख से अधिक लोग थे. करीब 10,000 करोड़ रुपए कोविड प्रबंधन पर खर्च किए गए और बिहार में कोविड को नियंत्रित करने के लिए नीतीश की प्रशंसा भी हुई (स्वस्थ होने की दर 95 प्रतिशत से अधिक थी).

अक्तूबर-नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों में राज्य अपने सबसे कड़वे चुनाव अभियानों में से एक का साक्षी बना. उसका परिणाम, जिसमें विजेता और पराजित के बीच केवल 15 सीटों का अंतर रहा, भी बिहार का सबसे करीबी चुनाव नतीजा बना. अगर नीतीश अपना मौजूदा कार्यकाल पूरा करते हैं तो वे राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद संभालने वाले शख्स बन जाएंगे. उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि विधायकों की संख्या कम होने के बाद भी—243 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 74 के मुकाबले जनता दल (यूनाइटेड) के पास सिर्फ 43 विधायक हैं—वे बिहार में सरकार बनाने के लिए अपरिहार्य हैं.

नीतीश ने जाति की राजनीति से अधिक सुशासन पर भरोसा किया, सत्ता में वापसी की है और इसने उनकी एक विरासत तैयार की है. उन्होंने चुनाव-प्रचार के दौरान संकेत दिया कि यह उनका आखिरी चुनाव है, सेवानिवृत्ति की सारी अटकलों को बाद में खारिज कर दिया. पर कई लोग इसे उनकी आखिरी पारी के रूप में देखते हैं. इसका मतलब है कि वे आने वाले दिनों में खबरों में छाए रह सकते हैं.

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