पीएमसीएच पटना : जहां फणीश्वरनाथ रेणु को प्रेम मिला और मौत भी!
बिहार के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में से एक पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) आज अपनी सौंवी वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर हिंदी के मशहूर लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का पीएमसीएच से जुड़ा यह रोचक संस्मरण पढ़िए

साल 1977 के जनवरी महीने के दूसरे हफ्ते की कोई तारीख रही होगी. देश पर लगी इमरजेंसी के खत्म होने की आहट आने लगी थी. सरकार जल्द ही लोकसभा चुनाव कराना चाह रही थी. उस वक्त इमरजेंसी का तीखा विरोध करने वाले और उसके विरोध में पद्मश्री पुरस्कार को 'पापश्री' कहने वाले हिंदी के महान लेखक फणीश्वरनाथ रेणु पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) में भर्ती थे.
रेणु अपने गांव औराही हिंगना से गंभीर बीमारी की हालत में पटना आये थे, उन्हें पेप्टिक अल्सर था. पीएमसीएच के डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें इस बार हर हाल में सर्जरी करानी चाहिए. उन्हें देखने और हाल-चाल जानने के लिए इमरजेंसी के खिलाफ चले 'संपूर्ण क्रांति' आंदोलन के सबसे बड़े नेता और रेणु के प्रिय जयप्रकाश नारायण (जेपी) खुद पीएमसीएच आये थे. जेपी के वहां पहुंचते ही काफी भीड़ लग गई.
रेणु ने जेपी से कहा, "आप क्यों यहां आने का कष्ट करते हैं? अभी मैं इतना बीमार नहीं हूं कि आपसे मिलने न आ सकूं. आप बुलवा लिया कीजिये." रेणु की बात सुनकर 'लोकनायक' जेपी बोले, "आप यह सब छोड़िये, डॉक्टर अगर सर्जरी की बात कहते हैं तो आप यहां क्यों सर्जरी कराना चाहते हैं, दिल्ली चले जाइये. मैं किसी बड़े अस्पताल में बात कर लेता हूं."
रेणु ने कहा, "नहीं. अगर सर्जरी ही होनी है तो मैं यहीं कराऊंगा क्योंकि पीएमसीएच मेरे लिए बड़ा भाग्यशाली अस्पताल है. कई बार मैं यहां मरणासन्न स्थिति में आया हूं और यहां के डॉक्टरों ने मुझे हर बार मौत के मुंह से बाहर निकाला है."
रेणु साल 1944, 1948 और 1951 में तीन बार पीएमसीएच में मरणासन्न स्थिति में भर्ती हुए थे, और हर बार वे वहां से स्वस्थ होकर लौटे. हालांकि रेणु का पीएमसीएच से लगाव सिर्फ इस वजह से नहीं था कि यहां उनकी जान बची. बल्कि इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि उन्हें वहां उनकी जीवन साथी लतिका से पहली बार मुलाकात हुई, जो वहां नर्स का काम करती थीं. फिर उनके साथ 33 वर्षों का सुखद दांपत्य जीवन गुजरा.
यह 1944 की बात है. 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान अंग्रेजों ने रेणु को भागलपुर जेल में बंद कर दिया था, जहां वे टीबी के मरीज हो गये थे. इलाज के लिए रेणु को जेल से निकालकर पीएमसीएच भेजा गया.
लतिका अपने एक संस्मरण में याद करती हैं, "उन दिनों राजयक्ष्मा (टीबी) भयानक बीमारी हुआ करती थी. मगर टीएन बनर्जी जो इस रोग के विशेषज्ञ थे, उन्होंने रेणु का इलाज किया और संयोग से वे ठीक हो गये. मगर ठीक होने के बाद भी वे कई बार अस्पताल में दिख जाते. मुझे लगता कि वे किसी परिजन का इलाज कराने आये हैं, मगर वे दरअसल मुझे ही देखने आते थे."
जब रेणु पीएमसीएच में टीबी का इलाज करा रहे थे तो कई बार वे अस्पताल के स्टाफ से लतिका जी के बारे में पूछते. उन्हें पर्चियां भिजवाते कि, "आप मुझे देखने क्यों नहीं आतीं!" 1948 में दोबारा रेणु पीएमसीएच में भर्ती हुए. फिर उन्होंने एक नर्स से लतिका जी के नाम पर्ची भिजवाई - "आप मुझे देखने नहीं आयेंगी?"
लतिका जी उनसे मिलने गईं तो रेणु ने कहा, "इस बार मैं बचूंगा नहीं."
लतिका जी बोलीं, "आप परहेज से रहिये, जरूर बच जायेंगे."
रेणु का जवाब था, "इस बार बच गया तो हमेशा परहेज करूंगा."
जिंदगी फिर से रेणु पर मेहरबान हुई, और इस बार लतिका जी के मन में भी रेणु को लेकर मोह पैदा होने लगा. तीन साल बाद, 1951 में एक बार फिर रेणु पीएमसीएच पहुंच गये.
अपने संस्मरण में लतिका याद करती हैं, "उसके परिवार वाले उसे लाद-फाद कर अस्पताल ले आये थे. वे रो रहे थे, इस बार और बचने की उम्मीद नहीं. एकांत में जाकर आदिशक्ति मां को मैंने याद किया, या तो इसे पूर्ण स्वस्थ कर दो, या उठा लो. फिर मरीज को डपटा, हर बार मरने लगते हो तो यहीं क्यों आ जाते हो."
"और कहां जाऊं" - रेणु ने भरे गले से कहा.
लतिका लिखती हैं, "नहीं कह सकती, उसके इस एक वाक्य ने मुझे किस गहराई तक बांध डाला था."
लतिका जी ने रेणु को बचाने के लिए सबकुछ झोंक दिया. इस सेवा-सुश्रुषा से 'मैला आंचल' के लेखक रेणु एक बार फिर बच गए. मगर अबकी बार रेणु ने लतिका से कहा, "अब कहीं नहीं जाऊंगा, यहीं रहूंगा, तुम्हारे साथ."
वहां से ठीक होकर रेणु लतिका जी के आवास पर पहुंच गये और वहीं रहने लगे. वहां उनकी कमजोरी की हालत में ही लतिका जी के साथ शादी हुई. हालांकि इससे पहले भी रेणु की दो शादियां हो चुकी थीं. जहां पहली पत्नी गुजर गईं, वहीं उनकी दूसरी पत्नी औराही हिंगना गांव में ही रह रही थीं.
रेणु की तीसरी शादी 5 फरवरी, 1952 को हुई, लतिका जी के मायके हजारीबाग में. और इस शादी के बाद रेणु के जीवन में स्थायित्व आने लगा. मगर इस स्थायित्व भरे जीवन में उन्हें पेप्टिक अल्सर रोग ने जकड़ लिया. 1967-68 में उन्हें इसका जबरदस्त दौरा पड़ा. लेकिन वे लतिका जी के इलाज से ठीक हो गये. 1973 में जब उन्हें इसका दोबारा दौरा पड़ा, तब उन्हें दिल्ली ले जाकर डॉ. ओमप्रकाश को दिखाया गया.
डॉक्टर ने सर्जरी कराने की सलाह दी. जुलाई में तारीख भी मिल गई. मगर रेणु को सर्जरी के नाम से भी डर लगता था. वे भागकर अपने गांव चले गये. 1977 में वे आखिरकार सर्जरी के लिए मान गये. इसी सिलसिले में वे पीएमसीएच में भर्ती थे. मगर हीमोग्लोबिन कम होने के कारण उस साल जनवरी में सर्जरी टल गई थी. वे दोबारा सर्जरी के लिए मार्च में भर्ती हुए. इस बीच उन्होंने हीमोग्लोबिन बढ़ाने के साथ जनता पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में खूब प्रचार भी किया.
उस साल 16 से 20 मार्च तक वोटिंग हुई. 23 मार्च को उनकी सर्जरी होनी थी. इससे पहले चुनाव के नतीजे भी आ गये. यह तय था कि सरकार जनता पार्टी की ही बनेगी. उन्हें सर्जरी के लिए जब ऑपरेशन थियेटर ले जाया जा रहा था तो उन्होंने अपने साथियों से कहा, "जब मैं बाहर आऊं तो सबसे पहले बताना कि सरकार किसकी बनी."
वे खुशी-खुशी ऑपरेशन थियेटर गये. मगर इस बार रेणु के लिए पीएमसीएच भाग्यशाली साबित नहीं हुआ. अस्पताल के बाद उन्हें होश ही नहीं आया. 19 दिनों तक वे बेहोश रहे. उनके प्रियजन उनके होश में आने का इंतजार ही करते रहे.