समलैंगिकता की 'खुफिया' दुनिया

खुफिया फिल्म में समलैंगिकता एक परमानेंट थीम की तरह रहती है. समलैंगिकता को लेकर कोई बड़ी स्पीच या स्टेटमेंट देने की कोशिश नहीं की गई, जो सबसे खास बात है

'खुफिया' में चारू, कृष्णा और हीना का किरदार (बाएं से)
'खुफिया' में चारू, कृष्णा और हीना का किरदार (बाएं से)

"बहुत अजीब थी वो. गुनाह की तरह छुपी-छुपी. सवाब की तरह ज़ाहिर. और कभी, किस्मत की तरह बेतुकी. उसकी आदत थी, पुलोवर की आस्तीन खींचकर ऊन में हथेलियां छुपाने की. छींक मारती थी तो एक साथ तीन. उसकी कॉलर बोन्स के बीच गले पर जहां एक गड्ढा होता है, वहां पर एक खूबसूरत तिल था."

कृष्णा (तब्बू) की आवाज में 'खुफिया' फिल्म के ओपनिंग सीन में ही दर्शकों का परिचय होता है ऑक्टोपस यानी हीना रहमान (अजमेरी हक बधोन) से. तब्बू की आवाज़ से निकली शुरुआती लाइन्स में ये कौतूहल पैदा होता है कि जिस महिला की बात हो रही है, वो आखिर कौन है. मगर अगली ही लाइन में गले के तिल पर आए फोकस से पता चलता है कि वह नायिका की प्रेमिका ही थी.

खुफिया फिल्म में समलैंगिकता एक परमानेंट थीम की तरह रहती है. ये बात कि समलैंगिकता को लेकर कोई बड़ी स्पीच या स्टेटमेंट देने की कोशिश नहीं की गई है, इस थीम को और खास, और वास्तविक बनाती है. फिल्म के केंद्र में मौजूद तब्बू के किरदार का एक बड़ा हिस्सा उसका सेक्शुअल ओरिएंटेशन है क्योंकि ये उसकी पर्सनल लाइफ और एक हद तक उसके प्रोफेशनल जीवन को प्रभावित करता है. 

कैक्टस (कृष्णा मेहरा) की ऑक्टोपस (हीना रहमान) से मुलाकात अपने मिशन पर होती है. कृष्णा एक इंटेलिजेंस (रॉ) एजेंट है और हीना एक ऐसी लड़की जो उसके लिए काम करना चाहती है. एक-एक फैसला सोच-समझकर लेने वाली एक सिंगल, तलाकशुदा मां कृष्णा के विपरीत हीना एक निडर और वर्तमान में जीने वाली लड़की है. हीना के अंदर जितना जूनून अपने काम को लेकर है, उतना ही अपनी मोहब्बत को लेकर भी है. जिस पेशे में ये दोनों महिलाएं हैं, यहां निजी और दफ्तर की दुनिया में कोई दूरी नहीं है और प्रेम का पेशे से टकराना अपरिहार्य सत्य है. 

कैक्टस और ऑक्टोपस एक दूसरे की पूरक थीं, न सिर्फ इसलिए कि वे साथ काम करती थीं बल्कि इसलिए भी क्योंकि वो एक दूसरे को अपनी सच्चाई और अपनी पहचान याद दिलाती थीं. उसके साथ कृष्णा अपना वो सच जी सकती थी जो अपने पूर्व पति और बेटे के साथ कभी न जी सकी.

'खुफिया' फिल्म के एक सीन में तब्बू का किरदार कृष्णा मेहरा

फिल्म के दूसरे हिस्से के एक सीन में जब चारू (वामिका गब्बी) कृष्णा से पूछती है कि उसने दोबारा शादी क्यों नहीं की. तो कृष्णा जवाब देती है, "लॉस्ट हर". चारू यह सुनकर एक पल को चौंकती है और इस सत्य को प्रोसेस करती है कि कृष्णा की रुचि एक महिला में थी.

जहां कृष्णा का हीना से रिश्ता एक ज़ाहिर प्रेम का था, चारू से एक अनकही सहानुभूति का था. जब सबसे पहले एजेंसी ने चारू-रवि के घर में कैमरे लगाए, चारू कृष्णा के लिए एक संदिग्ध औरत थी जो देश की सुरक्षा को खतरा हो सकती थी. मगर सर्वेलेंस करते हुए कृष्णा ने पाया कि चारू एक आम लड़की है, जिसकी दुनिया उसके बच्चे और पति के इर्द गिर्द घूमती है. पर जब घर में कोई नहीं होता, तब उसे अपनी सिगरेट रोल कर उसके धीरे-धीरे कश लेना और पुराने गीतों पर नाचना अच्छा लगता है. जब उसे कोई नहीं देखता, वो खुद से भरपूर मोहब्बत करती है.

कृष्णा उसे हर दिन उस स्थिति में देखती है जब उसे लगता है कि उसे कोई नहीं देख रहा है. चारू को अंतर्वस्त्रों में कामुकता भरे अंदाज में नाचते देखते हुए कृष्णा के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है. मानो उस वक़्त वो चारू के रूप में एक ऐसी शादी-शुदा महिला के हृदय में उतर पाती है जो अपने पति, बेटे और सास की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जी भर खुद को आईने में देख खुश होती है. 

चारू की मासूमियत देखते हुए कृष्णा ने कब उसकी संरक्षक की भूमिका निभानी शुरू कर दी, उसे मालूम ही नहीं पड़ा. फिल्म में दो बार प्रोटोकॉल तोड़कर कृष्णा, चारू की जान बचाती है और जब चारू खुद को विदेश में अपने ही परिवार के बीच अकेला पाती है तो फोन पर उसकी साथी बनती है.

यूं तो कृष्णा एक बहादुर महिला है लेकिन अपने बेटे के सामने वो हर बार कमज़ोर पड़ती है. अपने 19 साल के बेटे को वो आज तक नहीं बता पाई है कि उसने उसके पिता से तलाक क्यों लिया. इस मायने में फिल्म के अंत में न केवल कृष्णा का एक रॉ एजेंट के तौर पर मिशन खत्म होता है, बल्कि एक मां और अपनी यौनिकता में सहज एक महिला के तौर पर भी होता है, जो अपने बेटे को अपने सभी सच बताने के लिए अंततः तैयार हो गई है. 

तब्बू हर तरह के किरदार को बड़ी सहजता से निभाने के लिए जानी जाती आई हैं. इस फिल्म में भी उनकी आंखों और आवाज की लरजिश ने एक लेस्बियन महिला की आइडेंटिटी को गहराई दी है. फिर चाहे वो अपने बेटे के सामने अपनी यौनिकता को छुपाना हो या अपनी प्रेमिका के सामने उसे दिखाना हो. 

दूसरी ओर दुश्मन को अपने मोह में बांधकर उसकी जान लेने की योजना के तहत काम कर रही हीना का किरदार अपने स्त्रीत्व का खुलकर प्रदर्शन करता है. ये किरदार निभाने वाली बांग्लादेशी एक्ट्रेस बधोन, दिप्रिंट से हुई एक बातचीत में कहती हैं, "मुझे मालूम है कि जब बांग्लादेश में इस फिल्म को देखा जाएगा, मेरे बारे में बुरी राय बनाई जाएगी. क्योंकि मेरा किरदार लेस्बियन है... पर मुझे फर्क नहीं पड़ता. मेरे लिए ये महत्वपूर्ण है कि मैंने विशाल भारद्वाज और तब्बू के साथ काम किया."

एक फिल्म के तौर पर खुफिया को मिले-जुले रिव्यूज मिले हैं. जहां तमाम क्रिटिक्स ने एक्टर्स के काम की तारीफ की है, वहीं फिल्म की कहानी को बोझिल बताया है. इन दोनों के बीच एक 'सिल्वर लाइनिंग' यह है कि फिल्म इस स्टीरियोटाइप से ऊपर है कि समलैंगिक नायिका सिर्फ उसी फिल्म में हो सकती है जो समलैंगिकता के मसले पर बनी हो.

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