कैमरे में दर्ज नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया!

फोटोग्राफर बंदीप सिंह की तस्वीरों की प्रदर्शनी 'भस्मांग: द वे ऑफ नागा साधूज़' 24 फरवरी से 2 मार्च तक दिल्ली के त्रावणकोर पैलेस में सज रही है

फोटोग्राफर : बंदीप सिंह
फोटोग्राफर : बंदीप सिंह

नागा साधु बस कौतुक और विस्मय की चीज हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं! फोटोग्राफर बंदीप सिंह की राय में बड़े पैमाने पर लोग ऐसा ही मानते हैं. उनकी तस्वीरों की प्रदर्शनी 'भस्मांग: द वे ऑफ नागा साधूज़' 24 फरवरी से 2 मार्च तक दिल्ली के त्रावणकोर पैलेस में सज रही है.

महाकुंभ में अब तक करोड़ों लोग डुबकी लगा चुके हैं और रहस्यमय नागा साधुओं की भांति-भांति की तस्वीरें पहले ही चौतरफा छप चुकी हैं. हमें लग सकता है कि ऐसे में भला और ताजगी वाली नई तस्वीरें क्या हो सकती हैं! बंदीप यहीं हमें गलत साबित करते हैं.

फोटोग्राफर : बंदीप सिंह

प्रदर्शनी में लगे नागाओं के उनके चित्र न सिर्फ रोशनी के इस्तेमाल पर उनकी महारत साबित करते हैं बल्कि अखाड़ों में उनकी 'घुसपैठ' भी बयान करते है. 2013 में पहली बार तस्वीरों के लिए कुंभ गए और खासकर हरिद्वार के अखाड़ों-डेरों की नियमित यात्राओं से वहां व्यक्तिगत आत्मीय संबंध बनाने वाले बंदीप को 2019 में तो जूना अखाड़े के भीतर एक तरह से अपना स्टूडियो सेटअप करने का न्यौता दिया गया.

फोटोग्राफर : बंदीप सिंह

वे बताते हैं, "वहां मेरी उपस्थिति वैसे फोटोग्राफर के रूप में दर्ज नहीं हुई कि फोटो लिया और फुर्र...उन्होंने समझ लिया कि मेरी जिज्ञासा उन्हें सुनने, उनके साथ घुलने-मिलने और उन्हें ऑब्जर्व करने में है." जूना अखाड़े के भीतर 10 दिन तक शूट करने के बाद इस साल वे अलग-अलग कोणों से चित्र उतारने तमाम अलग-अलग शिविरों में गए.

फोटोग्राफर : बंदीप सिंह

दोनों के फर्क को वे इस तरह  समझाते हैं, "स्टूडियो जैसे सेटअप में जब आप स्टाइलाइज्ड पोर्ट्रेट कर रहे होते हैं तो उनके चरित्र एवं भंगिमाओं की तस्वीरें मिलती हैं. पर जब आप उनको उन्हीं के टेंट में शूट करते हैं तो उनके साथ एक बड़े परिवेश को आप पकड़ते हैं."

फोटोग्राफर : बंदीप सिंह

उसी के नतीजे में तस्वीरों की एक ऐसी सीरीज सामने आई है जिनकी गहराई देखकर आप ठिठक जाएं. हरेक में कई-कई मायने समाए हुए हैं. ये तस्वीरें नागा साधुओं की आंखों, उनकी जटाओं और खास अंग-रंगों के जरिए उनके आध्यात्मिक संसार में ले जाती हैं. बंदीप के लिए तो यह एक सफर की शुरुआत भर है. 

"अगले कुछेक महीनों में उनके साथ और भी वक्त बिताने की मेरी मंशा है और मुझे उम्मीद है कि इस जद्दोजहद में यह ब्रह्मांड मुझे थोड़ा और गहरे उतरने देगा." बाद में अपने ये सारे अनुभव वे नागा साधुओं पर एक किताब की शक्ल में उतारना चाहते हैं. ध्यान खींचने वाली सघन तस्वीरों के उनके संग्रह में इस तरह से एक और आयाम जुड़ जाएगा.

—प्रिया पाथियान

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